सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यन्वयन मंत्रालय की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार मध्यप्रदेश मे 20331 मेगावाट बिजली उत्पादन की क्षमता पहले से ही स्थापित है और उसकी मांग 9000 मेगावाट है, तो फिर मध्यप्रदेश सरकार को अडानी से 1320 मेगावाट बिजली खरीद का करार की जल्दबाजी क्यों है?
जनज्वार। देश और दुनिया कोरोना वायरस की महामारी के इस सकंट को फैलने से बचाने मे लगे हैं। लाखों मजदूर भूखे और प्यासे पैदल अपने गाँवों की ओर लौट रहे हैं। यह कहना भी असंगत नहीं होगा की यह अनियोजित लॉकडाउन केवल मजदूर वर्ग के लिये ही है लेकिन इस दौर में दूसरी ओर सरकारें और निजी कंपनियां अपने काम बड़ी तेजी से निपटाने मे लगी हैं। मध्यप्रदेश सरकार ने अडानी की छिदवाड़ा पेचं थर्मल पावर परियोजना के साथ बिजली खरीद करार किया। इसकी सार्वजनिक जानकारी समाचार पत्रों 27 मई को उस वक्त मिली जब मध्यप्रदेश सरकार ने सूचना दी।
यह परियोजना 1320 मेगावाट क्षमता की कोयले पर आधारित है। जहां पूरी दुनिया कोयले से जुडे सभी उद्योगों से दूर जा रही है वहीं मध्यप्रदेश, भारत द्धारा किये गये पेरिस समझौते के विरोधाभास में जलवायु में कार्बन उत्सर्जन में योगदान कर रहा है। भारत सरकार के सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यन्वयन मंत्रालय की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार मध्यप्रदेश मे 20331 मेगावाट बिजली उत्पादन की क्षमता पहले से ही स्थापित है और उसकी मांग 9000 मेगावाट है। इस आधार पर प्रदेश में सरप्लस बिजली उपलब्ध है।
तो फिर सवाल उठता है की उसके बावजूद ऐसी कौन सी जल्दबाजी है जिससे मध्यप्रदेश सरकार को अडानी से 1320 मेगावाट बिजली खरीद का करार करना पड़ रहा है? इस तरह की बिजली खरीद करार का किसको फायदा होने वाला है? और इसके क्या महत्वपूर्ण कारण हैं ?
इसको लेकर नर्मदा बचाओ आंदोलन ने कहा कि मध्यप्रदेश में बिजली के बढते वित्तीय घाटे जनता की जेब पर भारी पड़ रहे हैं, दूसरी तरफ राज्य अपने सरकारी बिजली घरों को बंद कर निजी बिजली कंपनियों से ऊँची दरों पर बिजली खरीद रही है। सतपुड़ा थर्मल पावर परियोजना की 210 मेगावाट वाली इकाइयों को सरकार ने बंद कर दिया जो की सस्ती बिजली दे रही थी। प्रदेश की जल बिजली परियोजनाएं जैसे बरगी, बाणसागर व पेंच जो सस्ती बिजली उपलब्ध करवा सकती है तो क्या उनसे बिजली नहीं ली जा रही है। इसके अलावा सरकार ने कई निजी पावर कम्पनियों से नियत प्रभार (फिक्स चार्ज) के करार कर रखे है जिसके कारण राज्य सरकार को हर साल बिना बिजली लिये हजारों करोड़ रूपये चुकाने पड़ रहे हैं।
इस पर महंगी बिजली अभियान की ओर से कहा कि राज्य विद्युत नियामक आयोग के टैरिफ आदेश 2019 – 20 अनुसार गत वर्ष सरकार ने नियत प्रभार (फिक्स चार्ज) परियोजनाओं को 2034 करोड़ रु देने का प्रावधान किया गया जो कि गैरजरूरी था। विगत माह में राज्य सरकार ने नर्मदा घाटी में 26 साल पुरानी महेश्वर बिजली परियोजना के समझौते को रद्द कर दिया। इस परियोजना सें 18 रूपये प्रति यूनिट बिजली का करार किया गया था। यह स्पष्ट करता है कि ये बिजली खरीद करार राज्य बिजली वितरण कम्पनियों को वित्तीय सकंट में धकेल रहे हैं। इसके कारण राज्य बिजली वितरण कम्पनीयां लगातार वित्तीय संकट का सामना कर रही है।
महंगी बिजली अभियान ने आगे कहा, ‘हालाकि बड़ी जल विद्युत और सौर परियोजनाओ से सस्ती बिजली न मिलना न केवल परियोजनाओं से हुआ सामाजिक पर्यावरणीय नुकसान को सही ठहराता है। हमको ऐसे विकल्प तैयार करने होंगे जिससे बिना किसी बड़े सामाजिक, पर्यावरणीय और आर्थिक नुकसान के सभी के लिए सतत और समान बिजली मिले। बिजली केवल एक वर्ग की विलासिता का साधन न बनकर रह जाये। अब तक जिन परियोजनाओं को सामाजिक, पर्यावरणीय और आर्थिक तबाही कर स्थापित किया गया है उनको लोगों को सस्ती बिजली पहुचाने में उपयोग किया जाना चाहिये।’
अखिल भारतीय पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के प्रवक्ता वीके गुप्ता का कहना है कि मध्यप्रदेश में औसत बिजली मांग 9000 मेगावाट और अधिकतम मांग 14500 मेगावाट है जबकि राज्य ने पहले ही 21000 मेगावाट के बिजली खरीद करार पर हस्ताक्षर किए हैं। इस सकंट में बिजली लिये बिना वितरण कम्पनियों को 2000 करोड़ से भी अधिक का भुगतान करना पड़ रहा है। अडानी बिजली परियोजना के साथ बिजली खरीद का समझौता एक गैरजरूरी समझौता समझा जा सकता है।
राज्य मे बिजली परियोजनाओं का प्लांट लोड फैक्टर पहले से ही कम था लेकिन कोरानावायस के कारण बिजली की मांग और कम हो गई है। ज्ञात हो कि राज्य बिजली वितरण कम्पनियों ने नौ बिजली खरीद करार कर रखे हैं। वर्तमान में बिजली की कम मांग को देखते हुये उनमें से चार निजी बिजली कम्पनियां टोरेंट पावर, बीएलए पावर, जेपी बीना पावर और एस्सार पावर बिजली की आपूर्ति नहीं करेंगे लेकिन राज्य वितरण कम्पनी को इन निजी पावर कम्पनियों को बिजली की एक यूनिट लिए बिना भी निर्धारित शुल्क का भुगतान करना पड़ेगा।
पूर्व अतिरिक्त मुख्य अभियन्ता मध्यप्रदेश पावर जनेरेटिंग कम्पनी लिमिटेड राजेन्द्र अग्रवाल का कहना है कि राज्य के पास अगले 10 वर्षों के लिए सरप्लस बिजली मौजूद है लेकिन अडानी पावर की पेंच थर्मल एनर्जी लिमिटेड के साथ बिजली खरीद का समझौता सासन बिजली परियोजना से भी अधिक महंगा है। शासन की प्रति यूनिट दर 1.194 रुपये थी जबकि अडानी परियोजाना की प्रति यूनिट दर 4 गुना लगभग 4.79 प्रति यूनिट पड़ रही है जो कि अबतक की सबसे ऊँची दर पर करार किया गया है। यह मनमानी और बिना पारदर्शिता के किया जा रहा है। यह करार 25 वर्ष की अवधि में 1 लाख करोड रुपये से भी अधिक का नुकसान राज्य वितरण कपंनी को दे सकता है। यह भारत की टैरिफ नीति का पूर्ण उलघन्न है।
‘एक ओर राज्य सरकार कोयले पर आधारित महंगी बिजली परियोजनों से बिजली खरीदने के करार कर रही है और दूसरी ओर नवीकरणीय उर्जा आधारित परियोजनाओं जैसे सौर और पवन चक्की से मिलने वाली प्रति यूनिट बिजली के दाम पिछले कुछ सालों से लगातार गिरते जा रहे हैं। सौर उर्जा की प्रति यूनिट दर आज रु 2.14 प्रति यूनिट तक पहुँच गयी है। तो फिर सवाल ये भी उठता है की एक ओर तो केंद्र सरकार द्वारा सस्ती नवीकरणीय उर्जा को बढ़ावा दिया जा रहा है और दूसरी ओर राज्य सरकारें कोयले आधारित परियोजनाओं से बिजली खरीदने के करार क्यो कर रही है‘।’
‘अडानी परियोजना के साथ बिजली खरीद का समझौता किसी भी नजरिये से सही नही है। बिजली क्षेत्र पहले से ही वित्तीय सकंट का सामना कर रहा है और प्रदेश मे स्थापित निजी बिजली कंपनियां पहले से ही वित्तीय संकट में है और सरकार से उनकी वित्तीय जमानत के लिये गुहार लगा रही है। ऐसी परिस्थितियों में अडानी के साथ अतिरिक्त बिजली खरीद समझौते आनावश्यक है। यह राज्य सरकार को और राज्य वितरण कंपनियो के साथ प्रदेश की जनता पर भी अतिरिक्त भार डालेगा। यह बिजली खरीद समझौते के अनुसार सरकार को यह भुगतान 25 वर्षों तक करना पड़ेगा। यह प्रदेश की जनता से बिजली के दर बढ़ाकर हजारो करोड़ रूपये वसूले जा सकने का रास्ता खोलेगा।’
इसको लेकर बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ (मंडला, सिवनी, जबलपुर), चुटका परमाणु विरोधी संघर्ष समिति (मंडला), बरगी बांध मत्सय उत्पादन एवं विपणन सहकारी समिति (जबलपुर), झाबुआ पावर प्लांट प्रभावित संघ (सिवनी), किसान संघर्ष समिति (छिंदवाड़ा), भारत जनविज्ञान जत्था (दिल्ली), राष्ट्रीय किसान कामगार परिषद (सतना) समेत 28 संगठनों ने राज्य सरकार से मांग है की अडानी के साथ किये गए समझौते को सार्वजानिक हित में तु्रंत रद्द करे। ऐसी उन सभी परियोजनाओ के बिजली खरीद करारो को रद्ध करे जो महंगे और गैर जरूरी हैं। मध्य प्रदेश की आम जनता और राज्य बिजली वितरण कपंनी पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ बढने से बचाये। मध्य प्रदेश सरकार की आपनी परियोजनाओं को चालू करे ताकि प्रदेश की जनता को सस्ती बिजली मिल पाये।
The article published in Janjwar can be accessed here.