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भारत सरकार की पावर उत्पादन सार्वजनिक कम्पनी नेशनल थर्मल पावर कार्पोरेशन (एनटीपीसी), मध्य प्रदेश के 600 मेगावाट के एक निजी स्ट्रेस्ड पावर प्लांट को 1900 करोड मे खरीद कर निजी कंपनी के घाटे की भरपाई करने जा रही है। अवंथा कंपनी का 1320 मेगावाट (600 मेगावाट आपरेशनल)झाबुआ पावर प्लांट मध्यप्रदेश के बर्गी बाध के नजदीक बरेला में स्थित दिवालिया कार्यवाही (इन्साल्वसी प्रोसेस) से गुजर ती है। इससे पहले तनावग्रस्त झाबुआ पावर प्लांट को अडानी पावर, एनटीपीसी, जेएसडब्ल्यू और टाटा पावर-समर्थित रिसर्जेंट पावर ने भी खरीदने की इच्छा जाहिर की थी। एक निजी पावर कंपनी अडानी ने एनटीपीसी की तुलना में ढाई गुना कम बोली लगाई थी। जबकि एनटीपीसी ने झाबुआ पावर प्लाट को पावर सेक्टर में स्ट्रेस्ड एसेटस खरीदने के लिए अब तक का सबसे अधिक प्रति-मेगावॉट का ऑफर दिया है।

यह पहला मामला है जब सार्वजनिक क्षेत्र की पावर उत्पादक कम्पनी किसी ऐसे निजी पावर प्लांट को खरीदने जा रही है जो पहले से ही वित्तीय संकट से गुजर रहा है। कम्पनी इस प्लांट को बेचना चाहती  है क्योकि उसके पास प्लांट को रन करने की भी कार्यशील पॅूजी भी नही है। यही नही झाबुआ पावर प्लांट के एक ऑपरेशनल लेनदार डेनमार्क की एफएल स्मीथ प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी जिसका लगभग 30 करोड़ रूपया बकाया था। जिसने कंपनी को कोयला हैंडलिंग उपकरण उपलब्ध करवाया था उसी ने कम्पनी को  एनसीएलटी में घसीट कर ले गई थी।

यहॉ ध्यान देने योग्य है कि झाबुआ पावर प्लांट उन 34 प्लांट मे से एक है जिसको मार्च 2018 में ऊर्जा पर संसदीय स्थायी समिति द्वारा विद्युत क्षेत्र में/स्ट्रेस/नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स ’पर ध्यान केंद्रित करने के लिए रिपोर्ट प्रकाशित की गई थी। इन 34 थर्मल पावर प्लांटों में से 32 निजी पावर प्लांट है इन प्लांटों में भारतीय बैंकिंग और गैर-बैंकिंग संस्थानों के 3 लाख करोड़ों रुपये के ऋण वापस नही आ पा रहे है।  मौजूदा सरकार ने इन बढ़ते वित्तीय संकट को हल करने के लिए कई असफल प्रयास किए। रिर्जव बैंक आफॅ इंडिया ने जून 2019 मे एक प्रूडेंशियल फ्रेमवर्क बैकों एवं कर्जदाताओ दिया था जिसके तहत जनवरी 2020 के पहले सप्ताह तक सभी स्ट्रेस्ड एसेट्स के रिज़ॉल्यूशन एनसीएलटी के बहार हो जाना चाहिये यदि नही तो सभी को एनसीएलटी मे पेश करना पडेगा।

यहॉ सवाल सरकार की भूमिका पर उठता है कि जो कम्पनीयॉ अपनी कार्यशील पूजी भी नही जुटा पा रही हैं उनको अनापत्ति प्रमाण देते समय ही  क्यो नही रोका जाता। अगर उनके पास निवेश करने के लिए पर्याप्त पूजी ही नहीं तो वे आपने आप को वित्तीय रूप से कैसे टिकाऊ बनागे। अंततः फिर कही ना कही इन अनुत्पादक प्लांटो के वित्तीय नुकसान को सरकार आम आदमी पर थोप देती है।

सरकार द्वारा निजी कंपनियों जमानत देने का यह कोई पहला मामला नही है लेकिन सरकार या सार्वजनिक क्षेंत्र द्धारा निजी कंपनियों के घाटों की भरपाई के मामले लगातार बढते जा रहे है। यह जग जाहिर है कि झाबुआ पावर प्लांट आपने प्रांरभिक दिनो से ही जमीन के विरोध और कार्यशील पूजी की कमी का सामना कर रही थी। इस प्लांट ने न केवल पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों को प्रभावित किया है, बल्कि बैंकों का 5,000 करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज बकाया है। कुल 18 बैंक और गैर-बैंकिंग संस्थानों ने झाबुआ पावर प्लांट को कुल 3018 करोडं रूपये का कर्ज दिंसंबर 2009 में तीन अलग अलग भागों में दिया था। जिसमे भारतीय स्टेट बैंक एवं उससे जुडे सात अन्य बैंक (490 करोडं), यूनियन बैक आफ इण्डिया (342 करोडं), युनाईटेट बैक आफ इण्डिया (175 करोडं), युको बैंक (215 करोडं), बैक आफ इण्डिया (221 करोडं) ओरिएण्टल बैंक आफ कार्मश ( 70करोडं), कारर्पोरेशन बैंक (175 करोडं) पंजाब नेशनल बैंक (175 करोडं) आरईसी (325 करोडं) पावर फाइनेन्श कारर्पोरेशन  (325 करोडं) एक्सिस बैंक (325 करोडं) ने इन बैकों को सगंठन की प्रक्रिया का नेतृत्व किया था।

यह सवाल उठता है कि यदि एनटीपीसी के प्रस्ताव के बावजूद कंपनी अपने ऋण का केवल 38 प्रतिशत ही चुका पायेगी। शेष 3100 करोड के ऋण की भरपाई का क्या होगा? क्या कंपनी अपने से भरेगी या सरकार इसकी भरपाई करेगी या कंपनी अपने अन्य किसी असेटस को बेच कर करेगी उसका कोई भी जिक्र नही है। इससे ना तो बैक परेशान ना सरकार। इन अनुत्पादक (स्ट्रेस्ड या एनपीऐ) पावर प्लाटों से पूरी रिकवरी करने का कोई एक्शन प्लान बनाने की बजाय, सरकार एनटीपीसी को निजी क्षेत्र के घाटों की भरपाई के लिये इस्तेमाल कर रही है। जबकि सरकार को चाहिये था कि वह जनता के पैसों की बरबादी करने वाली कंपनियो पर रोक लगाये।

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