मेवात (Mewat Banking Problems) राजधानी दिल्ली की तेज रफ्तार जिंदगी से करीब 90 किलोमीटर दूर है, अरावली की पहाड़ियो से घिरा मेवात जिला।
मेवात (Mewat Banking Problems) राजधानी दिल्ली की तेज रफ्तार जिंदगी से करीब 90 किलोमीटर दूर है, अरावली की पहाड़ियो से घिरा मेवात जिला। इस अल्पसंख्यक मुस्लिम बहुल आबादी वाले जिले का नाम, वर्ष 2016 में मेवात से नूंह कर दिया गया।यहां कि बहुसंख्यक आबादी ‘मेव’ है।नीती आयोग द्वारा 2018 में जारी पीछड़े जिलों की सूची में नूंह जिला अव्वल है।पिछले दस वर्षों में, भाजपा और कांग्रेस के नेतृत्व वाली दोनों सरकारों ने जिले के “उत्थान” के लिए कई कल्याणकारी योजनाओं पर, करोड़ों की धनराशि आवंटित की। लेकिन इन कार्यक्रमों का नगण्य प्रभाव रहा।
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नीती आयोग की रिपोर्ट में, स्वास्थय, शिक्षा, कृषि, वित्तीय समावेशन, कौशल विकास और बुनियादी ढाँचे जैसे 49 विकास संकेतकों पर 101 जिलों का मूल्यांकन किया गया था। इसके तहत नूंह ने देश भर में सबसे कम अंक, केवल 26 प्रतिशत हासिल किये।जिले की 88 प्रतिशतआबादी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है। शिक्षा के आंकड़ो से पता चलता है कि 73 प्रतिशतपुरुषो की अपेक्षा महिला में केवल 37.6 प्रतिशत साक्षरता दर है।स्वास्थ्य सेवा और कर्मियों के अभाव कीवजह से केवल 40.3 प्रतिशत संस्थागत प्रसव होते हैं। इसका मतलब है कि केवल इतनी महिलाओं को ही बच्चे के जन्म के दौरान डॉक्टरी सुविधा मिल पाती है। साथ ही महज 12 से 23 महीने वालेमात्र 27.3 प्रतिशत बच्चों का ही टीकाकरण हो पाता है। इन आंकड़ो से स्पष्ट है कि नूंह जिले में सेहत, शिक्षा और कृषि का बुरा हाल है। इसका सीधा असर यहां कि बैंकिंग सेवाओं पर पड़ा है। इतनी विषम परिस्थितियों में बैंकों से लोगों का तालमेल कैसा है, यह जानने के लिए नूंह में बैंकिंग सेवाओं का अध्ययन किया गया है।
बैंकिंग और नूंह –
किसी भी क्षेत्र के विकास के लिए उसके संस्थागत वित्तीय ढांचेका विकसित होना बेहद जरूरी है।अगर नूंह जिले पर हम इस दृष्टि से नज़र डाले तो यहां पर कुल 18 बैंकहै, जिसमें से 13 बैंक पब्लिक सैक्टर के, 2 प्राइवेट, 1 ग्रामीण व 2 को-ऑपरेटिव बैंक है। इन बैंकों की 102 शाखाएं हैं। जिले की कुल जनसंख्या 10.9 लाख है, जिसमे से केवल 41 प्रतिशत आबादी ऐसी है जो किसी भी तरह की बैंकिंग सेवा का लाभ उठाती है। इसका मतलब है कि एक बहुत बड़ा समुदाय ऐसा है, जो बैंकिंग सेवा या यूं कहें कि वित्तीय समावेशन से वंचित हैं। हैरानी की बात यह है कि नूंह में स्थानीय लोगों के बैंकों के प्रति रूझान में लगातार गिरावट दर्ज की गई है। जहां सन् 2001 में एक बैंक से करीब 31759 लोग जुड़े थे, वही 2011 में प्रति बैंक यह संख्या घटकर 26600 रह गई।
डेटा स्रोत: -भारत की जनगणना, 2011
सरकार द्वारा लगातार आमजन को खासकर ग्रामीण इलाकों में, बैंक (Mewat Banking Problems) से जोड़ने के प्रयास किये जा रहे हैं। इसी मकसद से सन् 2014 में प्रधानमंत्री जनधन योजना(PMJDY), प्रधानमंत्री जीवन सुरक्षा बीमा योजना(PJSBY) एवं अटल पेंशन योजना(APY) जैसी योजनाओं का शुभांरभ हुआ। जिसका मकसद था बैंकिंग सेवाओं को सुविधाजनक तरीके से समाज के निम्न तबके तक पहुंचाना। इन प्रयासों के बावजूद भी आखिर क्या वजह है कि नूंह में हर घर को बैंक से जोड़ने का महत्वाकांक्षी एजेंडा, अभी भी कोसो दूर है।
बैंकिंग सेवाओं से जुड़ी समस्याएं –
जिला मुख्यालय से महज 7 किलोमीटर दूर बसा है, घासेड़ा गांव। 25 हजार की आबादी वाला यह एक ऐतिहासिक गांव है। भारत-पाक विभाजन के दौरान महात्मागांधी यहां आए थे। उन्होंने यहां की मुस्लिम आबादी को पाकिस्तान जाने से रोका था।इसी गांव के निवासी 40 वर्षीयइमरान ने बताया कि उन्होंने नो फ्रिल के तहत सिंडिकेट बैंक में अपना खाता खुलवाया था, लेकिन 2 साल बाद उनके खाते को जिरो बैलेंस अकाउंट की श्रेणी से बाहार कर दिया गया। अब खाते में 500 रुपये से कम राशि होने पर पैसे काट लिये जाते हैं। कई बार उन्होंने बैंक जाकर पैसे ना रख पाने की असमर्थता बताई। लेकिन कोई हल ना निकलपाने के कारण, आखिरकार उन्हें अपना खाता बंद करवाना पड़ा। वहीं रमजान का कहना है कि,“मेरे गांव के 10 किमी दूरी के आस पास तक कोई एटीएम नहीं है। ऐसे में खाता रखकर करें क्या, जब पैसे ही नहीं निकाल सकते।”
बड़कली गांव में रहने वाली 35 वर्षीय रहीसन के पति की रोड दुर्घटना में मृत्यु के बाद, 5 बच्चों की जिम्मेदारी उनके ऊपर आ गई।उनका कहना है कि शुरू में तो रिश्तेदारों ने मदद की, लेकिन अब बच्चों की पढ़ाई लिखाई का खर्चा बढ़ रहा है और लोगों ने सहायता करना भी बंद कर दिया है। 2 साल पहले उन्होंने डेयरी खोलने के मकसद से लोन के लिए आवेदन किया था। कई बार बैंकों के चक्कर लगाने के बावजूद भी, उन्हें लोन नहीं मिल पाया। अब वो आस-पास के लोगों से कुछ उधार लेकर काम करने का सोच रही है।
नूंह शहर के सर्व हरियाणा ग्रामीण बैंक की शाखा में, कैश जमा काउंटर पर बैठे शख्स से जब मैंने पूछा कि मैनेजर साहब कहां मिलेंगे? उनसे मुलाकात करनी है।उन्होंने कहां, “मैं ही बैंक मैनेजर हूं, स्टॉफ की कमी के कारण कैश लेन-देन का काम भी करता हूं। उन्होंने अपना नाम नसरूद्दीन बताया। वे सन् 1982 से बैंकिंग क्षेत्र में अपनी सेवा दे रहे हैं। उन्होंनेबताया कि नूहं में लोन को लेकर अक्सर लोगों को परेशानी होती है, क्योंकि यहां पर 70 प्रतिशत एनपीए (नॉन परफोमिंग असेट) हैं।
सत्य प्रकाश जी (अग्रणी जिला प्रबंधक,नूंह) ने बताया कि नूंहमें 458 करोड़ का एनपीए हैं। पूरे प्रदेश में यह जिला ऋण अदायगी में सबसे पीछे है, जिसका सीधा-सीधा असर बैंक की अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है।वर्तमान में बैंक बड़े डिफॉल्टरों को चिह्नित कर, उनके नाम सार्वजनिक कर रही है, जिससे ऋण वापसी की प्रक्रिया को तेज किया जा सकें। आगे उन्होंने कहा कि कई बार सरकार द्वारा कर्ज माफी की घोषणा से भी एक बहुत बड़ा अमाउंट एनपीए के तौर पर खड़ा हो जाता है। जिसकी वजह से भी बैंकों को परेशानी का सामना करना पड़ता है।नूंह में बैंकों से लोगों की दूरी की मुख्य वजह पर बात करते हुए उन्होनें बताया कि यहां पर लोगों में शिक्षा की कमी है, इसलिए लोगबैंक से मिलने वाली फायदों के बारे में जागरुक नहीं है।
यहां स्थानीय लोगों और बैंक अधिकारियों से बातचीत के दौरान कुछ और महत्वपूर्ण कारण निकलकर आए, जो नूंह जिले के लोगों के बैंकिंग व्यवस्था से जुड़ने में आड़े आ रहे हैं। लोगों को सबसे ज्यादा परेशानी एटीएम को लेकर है। पूरे नूहं जिले के फिरोजपुर झिरका, पुन्हाना, तावडू, नूंह और इन्द्री ब्लॉक को मिलाकर कुल 40 एटीएम है। आमजन की शिकायत है कि पैसे निकालने के लिेए कई किलोमीटर चलकर आने के बावजूद अधिकतर ये एटीएम, या तो खाली रहते हैं या खराब मिलते हैं। बैंको में स्टॉफ की कमी हैइसलिए बैंको से उन्हें, वो सुविधा नहीं मिल पाती जो मिलनी चाहिए।
सरकार द्वारा बैंको को घाटे से उबारने के लिए छोटे बैंको का विलय बड़े बैंको के साथ करने करने की नीती ने, जहां एक ओर बैंको पर ग्राहकों का दबाव बनाया है वहीं वे दूसरी ओर स्टॉफ की कमी झेल रहे हैं। नूंह जैसे क्षेत्र में जहां पहले से ही इतने कम बैंक है इससे स्थिति और भी विकट हो जाती है। 1947 में देश के विभाजन से पहले नूहं जिला (Mewat Banking Problems) औद्योगिक रूप से पिछड़ा हुआ था। जिले में नमकीन बनाने, गोंद बनाने, चमड़ा काटकर जूता बनाने और कांच की चूड़ियां बनाने जैसे छोटे और कुटीर उद्योग मौजूद थे। 90 के दशक में नूंह के आस-पास के इलाकों में औद्योगिकरण बढ़ने लगा। जिसके फलस्वरूप यहां के लोगों के लिए रोजगार के अवसर बढ़े। अरावली पर्वत से पत्थर की कटाई और माल को ढोने का काम स्थानीय लोगों को मिलने लगा। जिले में शिक्षा के अभाव में कुषि के बाद, ड्राइवरी प्रमुख पेशा बन गया। सरकार द्वारा हाल ही में पहाड़ो की कटाई पर रोक लगाने के बाद, यहां के लोगों पर आजिविका का संकट फिर से मंडराने लगा है। स्थानीय लोगों का कहना है कि जब रोजगार ही नहीं है, तो बैंक में खाता रखकर क्या करेंगे।
ग्रामीण वित्तीय प्रणाली को सुदृढ़ और सुक्ष्म ऋण व्यवस्था बनाने के लिए,नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट (नाबार्ड) एक लंबे समय से नूंह जिले में प्रयासरत है। समय-समय पर सहकारी बैंको, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंको और स्थानीय स्वयं सेवी संस्थाओं के साथ मिलकर नाबार्ड ने, नूंह जिले में वित्तीय समावेशन का काम किया है। जिसके कई सकारात्मक परिणाम भी निकले जैसे कि सूचना के साधनों के अभाव में लोगों को बैंकिंग सेवाओं और सरकारी योजनाओं की जानकारी मिली और वे इनका लाभ कैसे उठा सकते हैं, इस पर भी जागरुक किया गया। लेकिन जिले में खराब परिवहन व्यवस्था, बैंकों की गांवों से अधिक दूरी, एटीएम की कमी और शिक्षा के अभाव में ई-बैंकिग सेवा से लोगों के ना जुड़ पाने के कारण, अपेक्षित परिणाम नहीं निकलकर आए।
निष्कर्ष –
बैंकिंग व्यवस्था (Mewat Banking Problems) की खामियों को दूर कर, आमजन के लिए वित्तीय सेवाओं को सुलभ बनाकर नूंह में विकास की गति को तीव्र किया जा सकता है। साथ ही क्षेत्र की जरूरत को समझकर ग्रामीण केंद्रित बैंक मॉडल होना चाहिए, जो स्थानीय जरूरत के अनुरूप हो। क्योंकि अधिकांश वित्तीय कार्यक्रमों में वित्तीय संस्थाओं की खामियां वित्त की पहुंच को सीमित करती हैं।इसके लिए बैंकिंग क्षेत्र में निवेश के साथ-साथ कर्माचारियों कीक्षमता निर्माण की भी आवश्यकता है जिससे स्थानीयों में बैंक से जुड़े भ्रम व भय खत्म हो। समय समय पर कार्यशालाओं के माध्यम से बैंकिग सेवाओं की जानकारी व आमजन तक उनकी पहुंच को सुनिश्चित कर, दोनो के बीच की दूरी को पाटा जा सकता है।
लेख – कोमल शर्मा (सामुदायिक रेडियो स्टेशन प्रबंधक,मेवात) यह लेख सेंटर फ़ॉर फ़ायनैन्शल अकाउंटबिलिटी, नई दिल्ली के स्मितु कोठारी फैलोशिप के एक भाग के रूप में प्रकाशित हुआ है।
This is published as a part of the Smitu Kothari Fellowship of the Centre for Financial Accountability, Delhi