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परिचय:

25 जून, 2015 को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा स्मार्ट सिटी मिशन शुरू किया गया था। इस योजना में पांच वर्षों की अवधि में 100 स्मार्ट शहरों के निर्माण की परिकल्पना की गई थी। इस योजना का उद्देश्य उन शहरों को बढ़ावा देना है जो वहां के नागरिकों को मूलभूत इंफ्रास्ट्रक्चर उपलब्ध कराने के साथ एक अच्छा जीवन स्तर, एक निरंतर और स्वच्छ वातावरण और ‘स्मार्ट’ समाधानों का अनुप्रयोग उपलब्ध कराते हैं।

स्मार्ट सिटी मिशन (एससीएम) के विवरणों और दिशानिर्देशों के अनुसार, केंद्र सरकार पांच वर्षों में 48,000 करोड़ रुपये यानी मिशन अवधि में प्रति शहर औसतन 500 करोड़ रुपये की सीमा तक वित्तीय सहायता देने का प्रस्ताव करती है। राज्यों/शहरी स्थानीय निकायों द्वारा मिलान के आधार पर एक समान राशि प्रदान की जानी है।

जुलाई 2021 में लोकसभा में दिये गये जवाब में सरकार ने कहा है कि कुल 1,80,873 करोड़ रुपये कीमत की कुल 6,017 परियोजनाओं को टेंडर द्वारा जारी किया गया था, जबकि इसमें 48,150 करोड़ रुपये की केवल 2,781 परियोजनाओं को ही पूरा किया गया है। परिकल्पित परियोजनाओं में से आधे से भी कम परियोजनायें ही निर्धारित अवधि में पूरी हो पायी और सिर्फ 25% धनराशि ही खर्च की गई।

हालांकि एससीएम के सामने मिशन परियोजनाओं को शहरी विकास में बुनियादी मुद्दों को संबोधित किए बिना आगे बढ़ाए जाने और शहरी गरीबों को ‘विकास के अधिकार’ से निरंतर बहिष्कृत करने जैसी प्रकृति के अंतर्निहित गहरे प्रश्न हैं। यह कोई संयोग नहीं है कि मिशन के 70 शहर कानून, व्यवस्था और पर्यावरण की निगरानी के लिए एकीकृत कमान और नियंत्रण केंद्र (आईसीसीसी) स्थापित करने की दिशा में काम कर रहे हैं। 74वें संविधान संशोधन के तहत नियोजित भागीदारी शहरी विकास, जहां निधि, कार्यों और कार्यकर्ताओं को शहरी स्थानीय निकायों को स्थानांतरित करने की आवश्यकता है, उसको पीछे धकेलते हुए आंकड़ों (डाटा) के बुनियादी ढांचे और निगरानी तंत्र के साथ मिलकर शहरी विकास के एक विशिष्ट एजेंडा को आगे बढ़ाया जा रहा है।

दूसरी ओर स्मार्ट सिटी मिशन शहरी शासन में निजी मॉडल को बढ़ावा दे रहा है जहां सत्ता और वित्त निर्वाचित स्थानीय निकायों के ऊपर बनाए गए स्पेशल परपज व्हीकल (एसपीवी) को हस्तांतरित किया जाता है। स्मार्ट शहरों का वित्तपोषण निजी वित्त को आकर्षित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है, जिसमें सरकारी खर्च अनुमानित परियोजना लागत के आधे से भी कम है। शेष राशि को बहुपक्षीय एजेंसियों से ऋण लेने सहित आंतरिक और बाहरी स्रोतों से जुटाने की आवश्यकता है। इसके परिणामस्वरूप राज्य सरकारों और नगर पालिकाओं के लिए समान वित्त जुटाना मुश्किल हो गया है।

हालांकि पश्चिम बंगाल जैसे कुछ राज्यों और नगर पालिकाओं ने असमान विकास की आलोचना की है जिसे इन मिशनों के माध्यम से बढ़ावा दिया जा रहा है, पर ऐसे मिशनों में भाग लेने के अनुभवों और सबक को छोटे और मध्यम स्तर के शहरों और नागरिक समाज संगठनों में एकीकृत किया जाना है। निजी विकास और वित्तपोषण का एजेंडा इस समझ के लिए महत्वपूर्ण है।

स्मार्ट सिटी कार्यशाला कोर्स

यह कोर्स विशेष रूप से नागरिक समाज समूहों, कार्यकर्ताओं और मध्यम एवं छोटे शहरों के छात्रों को उनके आस-पास के क्षेत्र में इंफ्रास्ट्रक्चर में बड़े पैमाने पर निवेश, शासन संरचना में परिवर्तन आदि के माध्यम से हो रहे बदलाव को समझने के लिये है। यह कोर्स शैक्षिक ज्ञान, दूसरे शहरों खासकर महानगरों के अनुभवों और इस पूरी प्रक्रिया को आगे बढ़ाने वाली वित्त की समझ और अपने अनुभवों को एक साथ लाकर एक व्यापक समझ बनाने के लिये है।

उद्देश्य:

  • स्मार्ट सिटी मिशन को समझें और यह शहरीकरण प्रक्रिया को कैसे संचालित करता है।
  • उन वित्तीय संस्थाओं को समझें जो परियोजना का हिस्सा हैं।
  • देश के विभिन्न हिस्सों से परियोजनाओं के अनुभव
  • अपने स्वयं के शहरों, क्षेत्रों के बारे में गंभीरता से अवलोकन करें और कैसे परिवर्तनों का प्रभाव पड़ता है, इस पर विचार करें।

कार्यशाला कोर्स का प्रवाह किस प्रकार होगा

  • प्रत्येक सत्र में प्रक्रिया पर एक चर्चा सत्र होगी।
  • निवेशकों और कैसे वह प्रक्रिया को चलाते हैं, इसके साथ जोड़ना।
  • परिवर्तन प्रक्रिया में समुदायों के विभिन्न अनुभवों के साथ जोड़ना।

कोर्स में पांच भाग होंगे

  • शहरीकरण, शहरी परिवर्तन और स्मार्ट सिटी को समझना।
  • शहरी प्रतिरोध और मांगें (आवास, बुनियादी सेवाएं, आजीविका के स्थान)।
  • शहरी परिवर्तन कैसे शासन परिवर्तन की ओर ले जाते हैं (74वां संशोधन, मिशन की प्रकृति को केंद्रीकृत करना आदि) ।
  • वित्त और प्रक्रिया को कौन चलाता है, इसको समझना।
  • शहर और जिन क्षेत्रों में वे काम करते हैं, उसमें क्या हो रहा है, उस पर प्रतिभागियों के अनुभव।

आज ही रजिस्टर करें: https://bit.ly/smartcityworkshopcfa

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