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लोकसभा चुनाव के बीच, केद्रिंय विधुत विनियामक आयोग ने अडानी मुद्रां पावर परियोजना की 2000 मेगावाट यूनिट का तय टैरिफ 2.80 रुपए से बढाकर 3.10 रुपए करने का आदेश जारी कर दिया है। इसका मतलब यह है की पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और महाराष्ट्र की जनता पहले की तुलने में 30 पैसे प्रति यूनिट दर से अडानी से बिजली ख़रीदेगी। आदेश यह दर्शाता है कि जनता के बुनियादी सवालों पर मोदी सरकार का क्या रूख है। यह आदेश लोकसभा चुनाव के दौरान आना अडानी जैसे कार्पोरेट घरानो के प्रति मोदी सरकार की प्रतिबद्धता को जरूर दर्शाता है। यह प्रतिबद्धता केवल आम जनता की गाढी कमाई पर अडानी के अच्छें दिन लाने की बात करती है। केद्रिंय विधुत विनियामक आयोग का यह आदेश, ना केवल अडानी पावर परियोजनाओं के वित्तीय घाटो को चार राज्यों की जनता पर थोप रही है, बल्कि यह भी इंगित करता है की वित्तीय संकट का सामना कर रहे सभी विद्युत परियोजनाये को भी उभारने में जनता की गाढी कमाई ही उपयोग की जायेगी।

आल इंडिया पावर इनजीनियर फेडरेशन का कहना है कि बोली लगाने की प्रक्रिया के दौरान अडानी पावर समूह राजस्थान ने दो रेट दिये थे एक घरेलू कोयले के आधार पर और दुसरा आयातीत कोयले के आधार पर। लेकिन कम्पनी ने कहा था की कम्पनी चाहे घरेलू कोयले का उपयोग करे या आयातित लेकिन टैरिफ रेट घरेलू कोयले की दर के आधार पर लिया जायेगा। इन सभी शर्तो के साथ कम्पनी ने 2010 मे बिजली खरीदी का अनुबंध अपनाया था। लेकिन बिना किसी घरेलू कोयले की व्यवस्था के कम्पनी ने 2013 मे प्रांरभ से ही 660 मेगावाट की दो यूनिटें में आयातित कोयले का उपयोग करना चालू कर दिया। कोल इडिया लिमिटेड को 100 प्रतिशत कोयले की आपूर्ति करनी थी लेकिन 2013 मे कोयला वितरण निती में परिर्वतन के कारण केवल 65 प्रतिशत ही कोयले पूर्ति कर पाई। जिसके पिछले पॉच सालो से इन्डोनेशियन महेगें आयातीत कोयले का उपयोग कम्पनी कर रही है। उपरोक्त जानकारी यह स्पष्ट करती है कि सरकार और अडानी पावर राजस्थान लिमीटेट अपनी गलतियों को जनता के उपर थोपना चाहती है।

वित्तीय घाटे का सामना कर रही पावर कंपनियों या कोर्पोरेट को जनता के पैसों से उभारने का चलन दिन व दिन बढता ही जा रहा है। जिसका सीधा बोझ या तो जनता के उपर थोपा जा रहा है या जन संस्थानों को जो जनता के पूँजी पर निर्भर है उनको निशाना बनाया जा रहा है। भारत की लगभग 40 पावर परियोजनाएँ अलग अलग कारणों से वित्तीय संकट का सामना कर रहीं हैं। यह सकंट सरकार की अनदेखी और बैकों की सुस्त लोन प्रक्रिया के कारण आया है। लेकिन सरकार ने अपनी गलतियों को केद्रिंय विधुत विनियामक आयोग के माध्यम से, अडानी पावर कम्पनी पर सवाल उठाने की बजाय, उसके घाटे की भरपाई चार राज्यों की जनता से सीधे तौर पर टैरिफ के रूप मे वसूलने के आदेश की स्वीकृति दिया है।

बिजली घोटलों की संख्या कम नही हो पा रही है और हर सुबह एक नया घोटाला सामने आ रहा है फिर चाहे कृत्रिम टैरिफ हो या कोयला खनन व अडानी पावर का विशेष आर्थिक जोन (सेज) हो, पावर परियोजनाओं हेतु मशीनरी का आयात करना हो या पावर क्षेत्र मे बढती गैर निष्पादित परिसंपत्तियाँ हो, इन सभी पर अडानी के बगैर बात करना मुश्किल ही नही ना मुमकिन है। यह दर्शाता है कि बिजली क्षेत्र एक गहरे वित्तीय संकट से गुजर रहा है। भारत में सबसे बड़ा घोटाला अगर किसी क्षेत्र मे है तो वो है बिजली क्षेत्र। पिछले पाँच सालों में पावर कम्पनियों का एनपीए मे लगातार वृद्धि ही हुई है। वहीं दूसरी ओर, टैरिफ दरो मे कृत्रिम रूप से वृद्धि का भी लगभग 50,000 करोड का घोटाला है। यह घोटाला तीन तरीको से किया गया वे हैं, आयातित कोयले का लगभग 29,000 करोड़ रुपये अधिक मूल्य का आयात बिल, लगभग 9000 मूल्य का अधिक बिल बिजली संयंत्र के उपकरणों की खरीदी का और कम से कम 10,000 करोड़ रुपये की किमत का प्रतिपूरक टैरिफ का लाभ इन पावर कम्पनियो को मिला। इन सब पर केद्रिंय विधुत विनियामक आयोग ने किसी प्रकार का संज्ञान आज तक नही लिया।

ज्ञात रहे कि अडानी समूह की छः पावर परियोजनाएँ कोयला और उसकी मशीनरी को आयात करने पर उसके मूल क़ीमत से आधिक क़ीमत के बिल पेश करने पर सुप्रिम कोर्ट मे धोखाधडी के केस का सामना कर रही है। इनके साथ टाटा और एस्सार भी वही केस का सामना कर रही है और अडानी के बाद ये दोनों कम्पनिया भी समान आदेश की आपेक्षा कर रही है। यदि यह आदेश राज्य सरकारे मानती है तो यह सीधे तौर पर उपभोक्ता को बोझ झेलना पडेगा।

सरकार और कारर्पोरेट की मिलीभगत पावर के नाम पर चारों ओर से जनता को लूट रही है। हजारो एकड जमीने नदियों के दोनो किनारो को ओने पौने दाम पर राज्य व केंद्र सरकार ने इन पावर परियोजनाओं के नाम पर इन कम्पनियों को सौप दिया है। लेकिन इन परियोजना से विस्थापित हो चुके हजारो परिवार आज भी आपने जीवनयापन के लिये मोहताज है। इन परियोजनाओ ने विकास के नाम पर विस्थापित कर उनके मौजूदा परंपरागत कौशलों नष्ट कर कम्पनियों के अकौशल कार्य करने के लिये मजबूर कर दिया।

हर दिन बैंकों का गैर सम्पादित सम्पतियॉ लगातार बढती जा रही है। आज लगभग तीन लाख करोड़ गैर निष्पादित परिसंपत्तियाँ केवल पावर उत्पादन क्षेत्र मे है। यह भी जनता का पैसा ही था जो कभी बैको ने कम्पनियॉ को लोन के रूप मे दिया था जो वो आज वसूल नही पा रही है। बैंक आपने इन घाटों की भरपाई जनता पर विभिन्न प्रकार के बैक शुल्कां माध्यम से वसूल रही है।

केद्रिंय विधुत विनियामक आयोग ने अडानी के नुकसान को टैरिफ की दरो मे वृद्धि कर जनता से वसूलने की इस अनुमित को देकर, जनता को लूटने के लिये पावर कम्पनियो को एक और हथियार दे दिया है। और यह केवल एक या दो साल के लिये नही बल्कि 20-25 वर्षो के लिये हैं क्योंकि पावर कम्पनियो से अनुबंध इतने ही लम्बे हैं। यह इस ओर इंगित करता है कि किसी भी हालात मे पावर के इस खेल मे फायदा या जीत केवल कार्पोरेट या कम्पनियों की ही होगी, नुकसान केवल और केवल जनता के हिस्से ही आयेगा।

केद्रिंय विधुत विनियामक आयोग जैसी पावरफुल संस्थाओं का निजी पावर कम्पनियों के इतने बडें घोटालों पर कोई संज्ञान ना लेना और उनके नुकसान की भरपाई टैरिफ नीति मे बदलाव के द्वारा जनता के उपर थोपना, आयोग के निजी पावर कम्पनियो की ओर झुकाव और पूरी तरह से बिजली वितरण कंपनियों के निजीकरण की ओर इशारा करता है।

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