भारत की पावर कम्पनियो को मिला जनवरी 2014 से सितम्बर 2017 के बीच 3.79 लाख करोड से भी अधिक का कर्ज विदेशी व्यवसायिक बैकों ने भारत की पावर कम्पनियो मे किया 84,206 करोड का निवेश

भारत दुनिया का तीसरा सबसे अधिक ग्रीनहाउस गैंस उत्सर्जक है। इसलिये भारत के लिये ओर भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि वह जलवायु परिवर्तन के मुद्दो सबोधित करने मे महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए। हालाकि जलवायु परिवर्तन के पेरिस समझौते पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कनवेन्शन मे भारत ने एक पार्टी तौर पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने हेतु आपनी एक सार्वजनिक घोषणा प्रस्तुत की। इसी दौरान भारत ने आपनी राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारण योगदान मे अपनी कुल बिजली उत्पादन का 40 प्रतिशत तक ऊर्जा के नवीनीकरण संसाधनो से 2030 तक उत्पादन की प्रतिज्ञा ली है।

लेकिन, बैंकट्रेक की रिर्पोट बैंक बनाम पेरिस समझौते के आकडें ठीक उसके उलट ही परिदृश्य बता रहे हैं। पूरी दुनिया की 120 कोयला प्लाटं बनाने या उसको मदद करने वाली कम्पनियो की 1600 नई पावर यूनिट्स बनाने की योजना है। भारत मे 2,12,562 मेगावाट परिचालन मे है और 1,74,773 मेगावाट का विस्तार हो रहा या होना है। विद्युत् उत्पादन करने में भारत की महारत्न कम्पनी नेशलन थर्मल पावर कार्पोरेशन (एनटीपीसी) 38,000 मेगावाट क्षमता का उत्पादन भारत और बांग्लादेश मे करने जा रही है। इससे यह स्पष्ट होता है कि भारत भले ही नवीनीकरण मे 40 प्रतिशत तक अपनी क्षमता बढाने की बात कर रहा हो लेकिन तापविधुत परियोजना क्षमता के निमार्ण में कोई असर नही पडेगा।

बैंकट्रेक की रिर्पोट के अनुसार, पूरी दुनिया के व्यवसायिक बैंकों ने जनवरी 2014 से सितंबर 2017 के बीच लगभग 600 बिलीयन डॉलर (डॉलर का मूल्य 11 जनवरी 2018 के अनुसार) का लोन व बॉण्ड या अडरराइटिगं के माध्यम से दिया या एकत्रित कर इन्ही 120 कम्पनियो को कर्ज के रूप मे दिया है।रिर्पोट का कहना है कि इसका आधा क़र्ज़, लगभग 275 बिलीयन डालर, पेरिस समझौते के बाद से ही कम्पनियो को दिया गया है। कुल वित्त का 82 प्रतिशत इन कोयला आधारित परियोजनाओ को बॉण्ड और शेयर के माध्यम से दिया जा रहा हैं। शेष 18 प्रतिशत मे से 5 प्रतिशत परियोजना फाइनेंस और 13 प्रतिशत कार्पोरेट फाइनेंस के माध्यम से आ रहा है।

इन कम्पनियो को जनवरी 2014 से सितंबर 2017 के बीच जो वित्त मिला उसका 60 प्रतिशत चीनी बैकों से आ रहा है। दुसरे नम्बर पर जापान के बैंक जो कुल वित्त का 8 प्रतिशत इन कम्पनियो को दे रही है। तीसरे नम्बर पर भारतीय बैंक है, जिन्होने कुल वित्त का 7 प्रतिशत इन कोयला आधारित कम्पनियो पर लगाया हुआ है।

कम्पनी को मिला कर्ज या वित्त (आकडें मिलीयन डालर में)

कम्पनी लोन बॉण्ड या शेयर
अडानी पावर 4,852 2,362
बीएसपीएचसीएल 0 132
एस्सार एनर्जी 1,737 0
जेएसपीएल 1,685 180
जेएसडब्ल्यू 1,010 466
लंको इन्फ्रा 2,218 0
एनएलसी इडिया 213 0
एनटीपीसी 3,219 9,239
पीएफसी 1,146 24,550
आरआरवीएनएल 0 48
टेनजेडको 0 592
टाटा पावर 3,963 1,835
आएलएफएस 26 0
कुल 20,069 39,404

तापविधुत परियोजनाओ का निमार्ण करने वाली दस भारतीय कंपनियां जिनमें एनटीपीसी, पावर फाइनेंस कार्पोरेशन, एस्सार, जिन्दल पावर, जेएसडब्ल्यू, लकों इन्फ्रा, एनएलसी इडिया, तमिलनाडु जनरेशन और वितरण कार्पोरेशन, टाटा पावर, एवं अडानी पावर शामिल है। जनवरी 2014 और सितंबर 2017 के बीच, कुल वित्त का 9 प्रतिशत, लगभग 3,79,056.724 करोड रूपये, भारत की दस कम्पनियो को भारतीय और विदेशी बैंकों से लोन व बॉण्ड के माध्यम से मिला है। भारतीय कोयला आधारित कम्पनियों मे कुल कर्ज का सर्वाधिक 43 प्रतिशत पावर फाइनेंस कापोरेशन को गया है, दुसरे नम्बर पर एनटीपीसी है जिसे 21 प्रतिशत प्राप्त हुआ। ये दोनो ही संस्थायें केंद्र सरकार के आधीन है जिन्हे कुल कर्ज का 63 प्रतिशत मिला है। इससे स्पष्ट होता है कि सरकार भले ही अक्षय बिजली की क्षमता बढा रही हो लेकिन कोयला-आधारित विद्युत् की क्षमता घटेगी नही। उसी प्रकार, केद्र के नक्शे कदम पर अडानी पावर और टाटा पावर भी चल रहे है। अडानी कर्ज लेनें मे तीसरे नम्बर पर है जिन्हे कुल कर्ज का 12 प्रतिशत मिला है, और चौथे नम्बर पर टाटा पावर है जिसे लगभग 10 प्रतिशत कुल कर्ज का लोन और बॉण्ड के माध्यम से मिला है। इन चारों ही कंपनियों ने कुल वित्त या कर्ज का 86 प्रतिशत लोन और बॉण्ड के माध्यम से लिया है।

सार्वजनिक बैंकों का कर्ज जनवरी 2014 से सितम्बर 2017 के बीच (आकडें मिलीयन डालर में)

बैंक परियोजनाओ की संख्या  लोन बॉण्ड या शेयर
इलाहबाद बैंक 5 382
आन्ध्रा बैंक 2 134
बैंक आफ बडोदा 3 147
बैंक आफ इडिया 3 175
बैंक आफ महाराष्ट्रा 4 190
केनरा बैंक 3 333
कपोरेशन बैंक 5 224
देना बैंक 2 150
आईडीबीआई 2 460
आईडीएफसी 4 1,153 1,137
इडियन बैंक 2 0 49
इडियन ओवरसीज बैंक 3 105
कर्नाटका बैंक 1 8
जे एण्ड के बैंक 3 209
भारतीय जीवन बीमा निगम 2 138
पजाब एण्ड सिधं बैंक 2 148
पजाब नेशनल बैंक 6 592
भारतीय स्टेट बैंक 9 7,231 2,627
सिंडीकेट बैंक 4 397
यूको बैंक 2 144
यूनियन बैंक आफ इडिया 5 228
यूनाइटेड बैंक आफ इडिया 2 59
विजया बैंक 2 110

भारत के 23 सार्वजनिक बैंकों ने 80,860 करोड रूपये लोन और 24,302.10 करोड रूपये बॉण्ड और शेयर के माध्यम से कोयला-आधारित कंपनियों को दिये है। इसमें भारतीय स्टेट बैंक ने 40,086.67 करोड रूपये लोन और 16,743.14 करोड रूपये बॉण्ड एवं शेयर के माध्यम से दिये है।

निजी बैंकों का कर्ज जनवरी 2014 से सितम्बर 2017 के बीच (आकडें मिलीयन डालर में)

बैंक परियोजनाओ की संख्या लोन बॉण्ड या शेयर
यश बैंक 4 0 2,284
तमिलनाड मर्केंटाइल बैंक 2 93 0
साउथ इडियन बैंक 2 38 0
रत्नाकर बैंक 1 0 22
कोटेक महीन्द्रा बैंक 3 0 1,731
आईसीआईसीआई बैंक 9 1,264 5,238
एचडीएफसी बैंक 7 721 2,440
एक्सिस बैंक 8 759 3,883
अन्य फाइनेंस कम्पनियो 7 129 11,161

दुसरी ओर, केवल 8 निजी बैकों के साथ अन्य फाइनेंसिंग कम्पनियों ने 1,70,548.11 करोड रूपये इन कंपनियों को बॉण्ड ओर शेयर के माध्यम से दिये है। जबकि लोन के रूप मे केवल 19,145.95 करोड रूपये लगाया है। आईसीआईसीआई बैक ने सबसे अधिक 41,440 करोड रूपये कोयला-आधारित कम्पनियो पर लगाया है।

उपरोक्त दोनो चार्ट से यह भी स्पष्ट हो रहा है कि सार्वजनिक बैंक अधिकतर वित्त लोन के रूप मे ही कर्ज या वित्त दे रहीं है, जबकि निजी बैंक पूंजी अधिकतर बॉण्ड या शेयर मे लगा रही है।

भारतीय कोयला-आधारित कंपनियों को इसी अवधि (जनवरी 2014 से सितंबर 2017) के दौरान 16 अन्य देशो के व्यवसायिक बैंकों ने भी लगभग 84,206.497 करोड रूपये का ऋण दिया है। इसमे भी यह स्पष्ट होता है कि कोयला-आधारित परियोजनाओं मे गैर-सार्वजनिक बैंक अधिकतम बॉण्ड और शेयर के रूप मे बैकें पैसा लगा रही है। ब्रिटैन, अमेरिका, जर्मनी और जापान ने कुल विदेशी बैकों के कर्ज या वित्त का 72 प्रतिशत कोयला-आधारित कम्पनियों को बॉण्ड और लोन के माध्यम से दिया है।

उपरोक्त सभी आकडें आखें खोलने वाले है। एक ओर, सरकार बैंकों को गैर-निष्पादित परिसंपत्ति अर्थात नॉन परफॉर्मिंग एसेट (एनपीए) के संकट से उभारने के लिये बाजार से पूजी एकत्र कर बैकों मे पूजी लगाने की बात कर रही है वहीँ दुसरी ओर इन परियोजनाओं मे बैंकों का निवेश आसमान छू रहा है। इस स्थिति का कारण अधिकाँश कंपनियों का कर्ज न चुका पाना है जिसके चलते यह क़र्ज़ एनपीए के रूप में उभर रहा है। यह एनपीए आज बढकर चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही के अंत तक 7.34 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है।

भारतीय स्टेट बैंक, जिसका एनपीए 1.86 लाख करोड़ रुपये है, उसने 56,000 करोड रुपये से भी अधिक इन कम्पनियों मे जनवरी 2014 से सितंबर 2017 के बीच लोन, बॉण्ड, व शेयर के रूप मे लगा दिए हैं। देश की निजी बैंके भी इससे पिछें नही है देश सबसे बडी निजी आईसीआईसीआई बैंक जिसका एनपीए निजी बैको के कुल एनपीए  का लगभग 44,237 करोंड रूपयें है वह भी उसी अवधी के दौरान 41,440 करोड लगभग जितना पहले दिये हुये कर्ज का एनपीए है उसका लगभग 90 प्रतिशत ओर कोयला बिजली कम्पनियों को लोन और बोडं या शेयर के रूप में कर्ज दिया है।

बैंक रोज नई नीतियां बना रहें है, जिसके सीधा असर आम लोगो पर हो रहा है। यह एक विरोधाभास को जन्म दे रहा है। एक ओर बैंक लोगों से बैंक द्धारा निर्धारित न्यूनतम मासिक राशि ना रख पाने के कारण जूर्माना वसूल रहा है, वहीँ दूसरी ओर कार्पोरेटस को दिये गये हजारों करोड़ के कर्ज को वो वसूल नही कर पा रहे हैं। और तो और, उनको कर्ज ना चुका पाने के चलते करोडों रुपयों की छूट और कर्ज देने की समयावधी को बढ़ाया जा रहा है। वित्त मंत्रालय ने भी कहा है की इसमें करीब 77 प्रतिशत हिस्सेदारी शीर्ष औद्योगिक घरानों के पास फंसे कर्ज का है। एक तरह से नोटबंदी और एनपीए के चलते बैंकों की आमदनी में भारी गिरावट आई है जिसकी भरपाई वे अब उन गरीब लोगों से वसूल कर पूरी कर रही है जिनकी आमदनी भी इतनी नही है कि वे बैंक मे न्यूनतम राशि रख पाये। पिछले चार सालों मे भारतीय बैंकों के कोयला कम्पनियों को दिये गये कर्ज के उपरोक्त आकडें दशार्ते है कि सरकार और बैंक जलवायु परिर्वतन और जनमानस के प्रति कितने चितिंत है।

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