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आधुनिक विकास के नाम पर जिन ‘भस्मासुरों’ को बनाया, बढ़ाया जा रहा है, प्लास्टिक उनमें से एक है। कुल-जमा सौ-सवा सौ साल पहले ईजाद किया गया यह कारनामा आज प्रकृति-पर्यावरण और इंसानों के अस्तित्व के लिए संकट बन गया है। क्या हैं, इसके खतरे?

पिछले साल के अंत में दक्षिण कोरिया के बुसान में आयोजित ‘अंतर – सरकारी वार्ता समिति’ ने प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के वैश्विक प्रयासों को महत्वपूर्ण माना था। वार्ता का उद्देश्य प्लास्टिक प्रदूषण पर कानूनी रूप से बंधनकारी संधि को अंतिम रूप देना था, जिस पर पहली बार बातचीत हो रही थी। हालांकि, वार्ता में आम सहमति नहीं बन पाई, परन्तु यह प्लास्टिक प्रदूषण के मूल कारणों से निपटने के साथ – साथ अधिक टिकाऊ उत्पादन और उपभोग प्रणालियों पर नियंत्रण को दर्शाता है। प्लास्टिक प्रदूषण मानव स्वास्थ्य पर विविध प्रभाव डालता है, जैसे – कैंसर, ह्रदय-रोग और प्रजनन स्वास्थ्य आदि।

प्लास्टिक की खोज सबसे पहले 1907 में की गई थी, लेकिन बहुत कम समय में ही इसका उपयोग बढ गया। कभी वरदान समझा जाने वाला प्लास्टिक आज दुनिया के लिए बङी समस्या बन चुका है। साल 1950 में दुनिया में प्लास्टिक उत्पादन 2 मिलियन टन था, जो साल 2021 में बढकर 390 मिलियन टन हो गया। ‘अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग और विकास संगठन’ (ओईसीडी) के मुताबिक आज 1950 के मुकाबले प्लास्टिक के मूलभूत अंग ‘सिंथेटिक पॉलिमर’ का वैश्विक उत्पादन 230 गुना बढ़ गया है। वर्ष 2000 से 2019 के बीच ही प्लास्टिक का कुल उत्पादन दोगुना होकर करीब 46 करोड़ टन हो गया था।

स्टील, एल्यूमीनियम और सीमेंट से भी ज्यादा ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌तेजी से ‘सिंथेटिक पॉलिमर’ का उत्पादन हो रहा है। ‘ओईसीडी’ के मुताबिक वर्ष 2060 तक यह आंकङा 46 करोड़ टन से बढ़कर 1.2 अरब टन हो जाएगा। पूरी दुनिया में प्लास्टिक कचरे का सिर्फ 9 प्रतिशत रिसाइकल किया जाता है, 19 प्रतिशत को जलाया जाता है और करीब 50 प्रतिशत लैंड-फिल यानि बङे – बङे गढ्ढों में भरा जाता है। बाकी 20 प्रतिशत अवैध रूप से फेंक दिया जाता है। ‘ओईसीडी’ के मुताबिक 2.2 करोड़ टन प्लास्टिक पर्यावरण में मिल गया है जिसमें से 60 लाख टन नदियों, तालाबों और सागरों में गया है।

प्लास्टिक के बेहद महीन कण, माइक्रो-प्लास्टिक के रूप में आज पूरी दुनिया में हावी हो चुके हैं। पृथ्वी पर मौजूद पानी का केवल कुछ हिस्सा, लगभग 0.3 प्रतिशत ही पीने लायक है। भारत में जल-प्रदूषण पहले से ही एक चिंता का विषय है, प्लास्टिक और कचरे के लीक होने से यह खतरा और बढ गया है। भूजल और जलाशय का पानी विषाक्त पदार्थों के रिसाव के कारण अतिसंवेदनशील है। यह न केवल पर्यावरण, बल्कि इंसानी स्वास्थ्य और जैव-विविधता के लिए बङा संकट है।

ऑनलाइन खाना पैक करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले काले प्लास्टिक कंटेनर लंबे समय तक स्वास्थ्य के लिए गंभीर जोखिम पैदा करते हैं। ‘फोर्टिस अस्पताल’ के मेडिकल ऑन्कोलॉजी के अतिरिक्त निदेशक डॉ. मंगेश कामत ने बताया कि रिसाइकिल किए गए इलेक्ट्रॉनिक कचरे से बने कंटेनर अक्सर जहरीले रसायनों को सीधे भोजन में छोड़ देते हैं, जिससे कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। उन्होंने कहा कि काले प्लास्टिक में ‘पॉलिसाइक्लिक एरौमेटिक हाइड्रोकार्बन’ होते हैं जो कैंसरकारी तत्व माने जाते हैं। समुद्री जीवन, मिट्टी की उर्वरता और मानव स्वास्थ्य को खतरे में डालने के अलावा प्लास्टिक कचरा वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में 3 से 4 प्रतिशत का योगदान देता है। प्लास्टिक प्रदूषण अब नए चिंताजनक स्तर पर पहुँच गया है।

‘टॉक्सिकोलाजिकल साइंसेज’ में प्रकाशित अध्ययन में बताया गया है कि प्लास्टिक के सूक्ष्म कण अब माता के गर्भाशय तक पहुँच गए हैं। यह अध्ययन अमेरिका स्थित ‘यूनिवर्सिटी ऑफ मेक्सिको हेल्थ साइंसेज’ के वैज्ञानिकों ने किया है। ‘साइंस’ पत्रिका में प्रकाशित शोध के प्रमुख लेखक सैमुअल पोटींगर के अनुसार यदि विश्व में प्लास्टिक उत्पादन पर प्रतिबंध नहीं लगाए गए तो 2050 तक प्लास्टिक प्रणाली से होने वाले वार्षिक ‘ग्रीन हाउस गैस’ उत्सर्जन में 37 फीसदी की वृद्धि होगी। विश्लेषण से पता चला है कि 2020 में विश्व द्वारा निर्मित 547 मिलियन टन प्लास्टिक में से अधिकांश का उपयोग पैकेजिंग के लिए किया गया था। पोटींगर के अनुसार ‘पर्यावरण में प्लास्टिक कचरा सूक्ष्म और नैनो प्लास्टिक सहित छोटे- छोटे टुकड़ों में टूट जाता है और इस प्रकार आर्कटिक के गहरे समुद्र तक असंख्य पारिस्थितिकी तंत्रों पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।’

‘संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम’ और अन्य अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों ने प्लास्टिक में करीब 13000 रसायनों की पहचान की थी। वहीं अब यूरोपियन वैज्ञानिकों की टीम ने अपनी रिपोर्ट में प्लास्टिक में 16325 रसायन होने की पुष्टि की है। इनमें से 26 फीसदी, यानि 4200 रसायन इंसानी स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए खतरनाक हैं। ‘कोलंबिया क्लाइमेट स्कूल’ के ‘लैमोंट – डोहर्टी अर्थ ऑब्जरवेटरी’ के एनवायरनमेंटल केमिस्ट की एक स्टडी में डराने वाला खुलासा हुआ है। एक लीटर बोतल के पानी में 2.4 लाख प्लास्टिक के टुकड़े मिले हैं। जिसका 90 फीसदी हिस्सा नैनो प्लास्टिक है। दुनिया भर में बोतल-बंद पानी का कारोबार किस कदर हावी होता जा रहा है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि हर मिनट दुनिया भर में 10 लाख से ज्यादा पानी की बोतलें बिकती हैं।

वर्ष 2021 में करीब 60000 करोड़ प्लास्टिक बोतलों और कंटेनरों का उत्पादन किया गया था जो 40 टन वजनी 625000 ट्रकों के वजन के बराबर है। सन् 2020 के एक अन्तर्राष्ट्रीय शोध से पता चलता है कि दुनिया भर में कोकाकोला हर मिनट 167000 बोतलें बनाता है। कहा यह भी जाता है कि यदि आप उन्हें एक पंक्ति में रखें, तो वे 31 बार चांद पर जाएंगी और वापस आएंगी। हर साल हम पृथ्वी पर 300 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा जमा करते हैं। दुनिया में प्लास्टिक बाजार का आकार वर्ष 2022 में 609.01 बिलियन अमेरिकी डॉलर था जो 2030 तक 824.46 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है।

‘डाउन टू अर्थ’ पत्रिका में रोहिणी कृष्णमूर्ति की रिपोर्ट के अनुसार भारत दुनिया का सबसे बड़ा प्लास्टिक प्रदूषक बन गया है। यहां सलाना 9.3 मिलियन टन प्लास्टिक निकलता है जो वैश्विक प्लास्टिक उत्सर्जन का लगभग पांचवां हिस्सा है। भारत सरकार ने ‘प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम – 2016’ को लेकर फरवरी 2022 में ‘विस्तारित निर्माता जिम्मेदारी’ (ईपीआर) के दिशा-निर्देश जारी किए हैं। केन्द्र सरकार ने वर्ष 2022 में ‘एकल उपयोग’ (सिंगल यूज़) प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगा दिया था और ‘बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक’ अपनाने की सलाह दी थी।

इसके बाद ‘प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम – 2024’ में ‘बायोडिग्रेडेबल’ और ‘कम्पोस्टेबल’ प्लास्टिक अपशिष्ट प्रदूषण की बढ़ती समस्या के समाधान के रूप में पेश किया गया है। इन दिशा-निर्देशों के तहत आज तक कुल 2614 प्लास्टिक अपशिष्ट प्रसंस्करणकर्ता (पीडबल्यूयूपी) पंजीकृत किए गए हैं और 103 लाख टन प्लास्टिक कचरे का प्रसंस्करण किया गया है। दिल्ली स्थित ‘सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट’ (सीएसई) की एक रिपोर्ट के अनुसार ‘केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड’ और ‘राज्य प्रदूषण नियंत्रण मंडलों’ ने पाया कि प्लास्टिक रीसाइक्लर्स द्वारा 700000 फर्जी प्रमाण-पत्र बनाए गए हैं जो रिसाइक्लर्स की प्रमाण-पत्र बनाने की क्षमता से 38 गुना ज्यादा है।

‘सीएसई’ के विश्लेषण में दिल्ली, बिहार, मध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु जैसे राज्यों में संचालित ‘मेकेनिकल रीसाइक्लर्स’ में इस प्रकार की गड़बडियां पाई गई हैं। मध्यप्रदेश सरकार ने 4 जून 2019 को सिंगल यूज प्लास्टिक पर बैन लगाया था। प्रदेश में इसका उत्पादन नहीं होता, लेकिन अन्य राज्यों से आ रहा है और उपयोग हो रहा है। सरकार ने प्लास्टिक प्रबंधन में उत्पादकों को जिम्मेदार बनाने के लिए ‘एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर्स रिस्पॉन्सिबिलिटी’ का नियम बनाया है, परन्तु ये आदेश और नियम कचरे में गुम हो गए हैं। हमारी पर्यावरणीय और स्वच्छता लागत बढती जा रही है। अपशिष्ट प्रबंधन या पुनर्चक्रण ही एकमात्र समाधान नहीं है। हमें अपने द्वारा उत्पन्न अपशिष्ट को कम करने के लिए सक्रिय रूप से काम करने की भी आवश्यकता है।

राजकुमार सिन्हा ‘बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ’

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