By

 कोयला सम्बंधित मुद्दों और ऊर्जा परिदृश्य पर दो दिवसीय कार्यशाला 

नागपुर, 12.09.2023: थर्मल पावर प्लांट, कोयला सम्बंधित सामाजिक और पर्यावरणीय मुद्दों और ऊर्जा परिदृश्य पर समुदाय स्तरीय क्षमता निर्माण कार्यशाला का आयोजन नागपुर के सिविल लाइन स्थित एमएलए हाउस (हॉस्टल), कॉन्फ्रेंस हॉल, में दिनांक 11-12 सितंबर 2023 को किया गया। जिसमे मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के थर्मल पावर प्लांट से प्रभावित समुदायों के लोगों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और शोधकर्ताओं ने भाग लिया। इस दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन सेंटर फॉर फाइनेंशियल एकाउंटेबिलिटी, नई दिल्ली, सेंटर फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट, नागपुर एवं बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ द्वारा किया गया।   

कार्यशाला का उद्देश्य प्रतिभागियों को थर्मल पावर परियोजनाओं से उत्पन्न होने वाले हानिकारक स्वास्थ्य, सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभावों का सामना करने पर उनके लिए उपलब्ध निवारण साधनों से परिचित कराना था। दूसरा उद्देश्य ऊर्जा परिदृश्य में उभरते रुझानों पर चर्चा करना और न्यायसंगत ऊर्जा संक्रमण के महत्व पर जोर देना था। तीसरा उद्देश्य एक ऐसे मंच को सक्षम करना था जहां प्रभावित समुदाय अपनी चिंताओं को सामने रख सकें।

भारत के ऊर्जा परिदृश्य मानव समाज में ऊर्जा की भूमिका और उसके स्रोत, जैसे कोयला, जलविद्युत और परमाणु परियोजनाओं का पर्यावरण, स्वास्थ्य और जलवायु पर हानिकारक प्रभाव होता है। ऊर्जा के अन्य विश्वसनीय स्रोत क्या है जैसे मुद्दों पर सेंटर फॉर फाइनैंशियल एकाउंटेबिलिटी (CFA) की अनीता सम्पत ने अपनी बात रखते हुए ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों से होने वाले फायदे और नुकसान के बारे बताया।  

भारत के जीवाश्म ईंधन भंडार सीमित हैं। तेल और प्राकृतिक गैस के ज्ञात भंडार वर्तमान भंडार और उत्पादन अनुपात के आधार पर क्रमशः 18 और 26 वर्षों तक चल सकते हैं। भारत के पास विशाल कोयला भंडार (84 बिलियन टन) है, जो लगभग 200 वर्षों तक चल सकता है, थर्मल पावर प्लांट की बढ़ती संख्या से भारतीय कोयले में बढ़ती राख सामग्री के साथ-साथ संबंधित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन प्रमुख चिंता का विषय है। 

बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ की तरफ से राजकुमार सिन्हा ने मध्य प्रदेश के ऊर्जा परिदृश्य और क्षेत्रीय रूप से केंद्रित ऊर्जा के विभिन्न स्रोतों का योगदान, ऊर्जा की मांग और उपलब्धता और निजी कंपनियों की बढ़ती बिजली खपत पर बात की। उन्होंने कहा की, “भूमि अधिग्रहण कानून और उसकी जमीनी हकीकत सरक़ार और निजी कंपनियों की मिली भगत बड़े पैमाने पर बिजली के नाम पर किसानो आदिवासियों से जमीनों को छीन रही है। भूमि अधिग्रहण कानून क्या कहता है और लोग इसका उपयोग कैसे कर, कैसे अपनी जमीन बचा सकते है और वापस ले सकते है, इसकी जानकारी उपलब्ध कराना जरूरी है।”

सेंटर फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट की लीना बुद्धे ने बड़े ऊर्जा परियोजनाओं से पर्यावरण प्रदूषण,जल प्रदूषण और स्वास्थ्य पर प्रभाव को मापने के तरीके और निगरानी रखने के तरीके और अपने संघर्ष में इन्हे कैसे उपयोग करें बताया। CFSD के द्वारा 2021 में नागपुर जिले के खापरखेड़ा और कोरडी थर्मल पावर प्लांट के आस पास 21 प्रभावित गाँवो में एक अध्ययन गया किया गया जिसमे 25 जगह से पानी और धूल के कणों के नमूने लिए गए और जांच में पाया गया की इन गॉंवो में पानी की गुणवत्ता काफी ख़राब है। जिससे इन 21 गावो के लोगों के स्वास्थ्य पर असर हो रहा है। 

सेंटर फॉर फाइनैंशियल एकाउंटेबिलिटी, नई दिल्ली (वित्तीय जवाबदेही संसथान) के वरिष्ठ शोधकर्ता अमितांशु वर्मा ने ऊर्जा वित्त प्रदान कर रहे संस्थानों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “ऊर्जा परियोजनाओं को वित्त प्रदान कर रहे बैंकों की सामाजिक और पर्यावरणीय जवाबदेही बनती है। जिन परियोजनाओं से विस्थापन, स्वास्थय और पर्यावरण पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है उनको लोन नहीं दिया जाए।” अमितांशु वर्मा ने कहा कि बैंकों और वित्तीय संस्थानों को व्यापक जवाबदेही प्रणाली लागू करने की आवश्यकता है। 

नागपुर से जम्मू आनंद ने शहरी क्षेत्रों में ऊर्जा खपत परिदृश्य पर प्रकाश डाला। वे बोले, “गरीब और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के लिए ऊर्जा उपलब्ध नहीं है, शहरीकरण के नाम पर उद्योगों और बड़े शॉपिंग माल को बड़ी मात्रा में बिजली उपलब्ध कराई जा रही है, शहरो में बदलती जीवन शैली में बढ़ते हुए ऊर्जा का इस्तेमाल को समझने की जरुरत है। यह भी समझना जरुरी है कि क्या किसी शहर में शहर की पूरी आबादी ससमान रूप से ऊर्जा का इस्तेमाल करती है? नहीं तो यह पता लगाना जरूरी कि शहर में वह कौन सा घटक है जो ज्यादा ऊर्जा का इस्तेमाल करता है और उसकी कीमत कौन चुकाता है?” 

ये मसला भी सामने आया की जिस तरह शहरो को बनाया जा रहा है वह ऊर्जा की खपत को अनियंत्रित रूप से बढ़ाता है। इसलिए हमें शहरी विस्तार के नए विकल्प ढूँढने पड़ेंगे।  

भारत सरकार देश के विकास के नाम पर बड़ी परियोजनाओ के निर्माण पर पिछले कुछ दशकों से लगातार बल दे रही है।  

कार्यशाला में मध्य प्रदेश के झाबुआ थर्मल पावर प्लांट,गाडरवारा थर्मल पावर प्लांट, चुटका परमाणु परियोजना, टुडे एनर्जी तथा महाराष्ट्र के कोराडी थर्मल पावर प्लांट, खापड़खेड़ा थर्मल पावर प्लांट, चंद्रपुर थर्मल पावर प्लांट एवं मौदा थर्मल पावर प्लांट से प्रभावित समुदाय और संगठनो के लगभग 30-35 लोगों ने भाग लिया और अपने अनुभवों को साझा किया।



A pop-up is always irritating. We know that.

However, continuing the work at CFA without your help, when the odds are against us, is tough.

If you can buy us a coffee (we appreciate a samosa with it!), that will help us continue the work.

Donate today. And encourage a friend to do the same. Thank you.