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पिछले साढ़े चार वर्षों में, देश एक बड़ी सामाजिक-राजनीतिक और आर्थिक उथल-पुथल से गुजरा है जैसा पहले कभी नहीं था। हाल के इतिहास में कभी भी एक साथ देश के इतने बड़े समूह को और विशेषकर समाज में हाशिए पर रहे लोगों को इतनी परेशानी से नहीं गुजरना पड़ा है। समाज के प्रत्येक वर्ग को देखते हुए, चाहे वह किसान हों, छोटे व्यवसाय, छात्र, शिक्षक / शिक्षाविद, महिलाएं, आदिवासी, धार्मिक अल्पसंख्यक, दलित, मछुआरे, नागरिक समाज, बुद्धिजीवी या पत्रकार, उनमें से हर किसी को इस सरकार का खामियाजा भुगतना पड़ा है। लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को समाप्त कर दिया गया है, संस्थानों को कमज़ोर किया गया और भारी पक्षपातपूर्ण दखल हुए हैं, जिससे लोकतांत्रिक स्थान कम हो गए हैं और सरकार पर सवाल खड़े करती आवाजें गूंजने लगी हैं।

लेकिन सवाल बहुत हो चुके हैं। मई 2014 ने आगे अच्छे दिनों, बहुतायत रोजगार और अर्थव्यवस्था में चमत्कार की गारंटी दी। हालांकि उसके बाद के चार वर्षों में कहने के लिए एक अलग और असहज कहानी है। जैसा कि किसी भी जिम्मेदार और कार्यशील लोकतंत्र में होता है, सरकार के कामकाज को अपने नागरिकों द्वारा जांच के तहत रखा जाना चाहिए ताकि सरकार को जवाबदेह ठहराया जा सके। इस दिशा में कई प्रयास किए जा रहे हैं। यह पुस्तक पिछले साढ़े चार वर्षों के आर्थिक और विकासात्मक कामकाज को करीब से देखने की दिशा में एक छोटा सा प्रयास है।

इस क्षेत्र में हुए भयानक परिवर्तनों को देखते हुए इसे अकेले करना एक कठिन काम है। विमुद्रीकरण (नोटबंदी), जीएसटी, वित्तीय समाधान और जमा बीमा बिल के असफल प्रयास, बैंक विलय, आरबीआई की शक्तियों की उपेक्षा और उसे कमजोर करना, सरकार और आरबीआई के बीच तनाव, IL&FS घोटाला, एलआईसी द्वारा आईडीबीआई को उबारना, सरकार द्वारा उठाये गए कदमों में से केवल कुछ ही है जिसने सामूहिक रूप से भारतीय अर्थव्यवस्था की नींव हिला दी है और अपने नागरिकों को असंख्य मुश्किलों और परेशानियों में डाल दिया है। बेरोजगारी, रिवर्स माइग्रेशन, कृषि संकट और सुस्त औद्योगिक विकास ने केवल संकट और असंतोष को बढ़ावा दिया है।

इसलिए एक ऐसी पुस्तक की आवश्यकता है जो आर्थिक परिवर्तनों का समग्र परिप्रेक्ष्य के साथ-साथ ऐसी कुछ नीतियों, जिससे काफी लोग प्रभावित हुए,के विश्लेषण को प्रस्तुत करें। इस संवाद और बहस से यह पुस्तक “रब्बल्स ऑफ एन इकॉनॉमिक अर्थक्वेक” आई है, जो सामूहिक प्रयास का एक परिणाम है। मैं कॉमरेड थॉमस फ्रेंको को इसके संपादन के लिए सहमत होने, समय निकाल कर लेखकों से संपर्क करने और उनके साथ आगे का काम करने, और कम समय में इसे लाने के लिए हमें प्रोत्साहित करने के लिए धन्यवाद देना चाहता हूं। मैं उन सभी लेखकों का भी आभार व्यक्त करना चाहूंगा जिन्होंने अपने योगदान के लिए विनम्रतापूर्वक सहमति दी।

यह किसी भी तरह से मोदी सरकार के आर्थिक प्रदर्शन का पूर्ण विश्लेषण नहीं है। लेकिन अर्थव्यवस्था पर पड़े प्रभाव के कुछ प्रमुख पहलुओं पर गौर करने का प्रयास है। हम आशा करते हैं कि यह पाठकों को इस सरकार के आर्थिक प्रदर्शन पर कुछ बहस को समझने और इसकी शुरुआत करने में मदद करेगा।

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