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मध्यप्रदेश का बिजली देश में सबसे महंगी बेची जाती है।क्योंकि उत्पादन और वितरण की ईमानदारी से नियमन और निगरानी नहीं होती है।वास्तव में सरकार ने उर्जा के उत्पादन और वितरण की नीतियों के मामले में जन जनपक्षीय भूमिका नहीं निभाई है। वर्ष 2003 में विधुत मंडल के घाटे को खत्म करने के लिए मध्यप्रदेश सरकार ने बिजली कम्पनियों का गठन किया गया था।बिजली कम्पनियों ने घाटे के दो मुख्य कारण प्रदेश में सरप्लस व बिजली चोरी बताया है। मध्यप्रदेश सरकार ने 2005 में विधुत उत्पादन करने वाली कम्पनियो से 25 साल के लिए बिजली खरीदी अनुबंध किया है।यह अनुबंध इस शर्त के अधीन है कि सरकार बिजली खरीदे या नहीं फिर फिक्स चार्ज के रूप में न्यूनतम राशि चुकानी होगी। मध्य प्रदेश के बिजली उपभोक्ता बिजली कंपनी के गलत निर्णय का बोझ उठाने को मजबूर हैं। जरूरत से ज्यादा बिजली के करार करने की वजह से हर साल प्रदेश को करोड़ों रुपये का नुकसान उठाना पड़ रहा है। वर्ष 2022 के अनुसार पिछले तीन साल में अकेले बिजली कंपनी ने 1773 करोड़ रुपये का भुगतान उन पावर प्लांट को किया, जिनसे एक भी यूनिट बिजली नहीं खरीदी गई। इन प्लांट को स्थाई लागत के रूप में राशि दी गई। इधर ये भार आम उपभोक्ता महंगी बिजली खरीदकर भर रहा है।बिजली बिल में एनर्जी चार्ज, फिक्स चार्ज, फ्यूल कॉस्ट, ड्यूटी चार्ज जुड़ते हैं। बिजली की दरों में वृद्धि के अनुपात में ही बाकी सारे चार्ज बढ़ते-घटते हैं।

बिजली कंपनियों के कुप्रबंधन की सजा आम उपभोक्ताओं को भुगतनी होती है। अधिकारियों की लापरवाही के कारण बिजली कंपनी को हुए नुकसान की भरपाई आम उपभोक्ताओं से की जा रही है।बिजली के दाम साल में एक बार तय होते हैं परंतु असामान्य परिस्थितियों में बिजली उत्पादन सामान्य बनाए रखने के लिए फ्यूल कास्ट एडजस्टमेंट (एफसीए) का प्रावधान किया गया है। बिजली कंपनियां इसी प्रावधान का फायदा उठाती है और हर 3 महीने में एफसीए के नाम पर बिजली की कीमत बढ़ा देतीं हैं।मध्य प्रदेश में 1 अप्रैल से नई बिजली दरें लागू हो गई है, जिसमें 3.46% की वृद्धि का प्रावधान किया गया है।बिजली कंपनी ने वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए 58,744 करोड़ रुपये की मांग की थी, जिसके विरुद्ध विधुत नियामक आयोग ने 57,732.6 करोड़ रुपये मंजूर किया है।बिजली मामलों के जानकार राजेंद्र अग्रवाल के अनुसार “याचिका में कहा गया है कि बिजली कंपनियां को 2023-24 में 54637 करोड़ रुपए की आय हुई है और 54637 करोड़ का ही खर्च हुआ है लेकिन 2025-26 में बिजली कंपनियों ने अतिरिक्त राशि की जरूरत बताई है। बिजली कंपनियों का कहना है कि उन्हें 2025-26 में 58744 करोड़ रुपए की जरूरत पड़ेगी. इसलिए बिजली की दरें बढ़ाना चाहते हैं। राजेंद्र अग्रवाल का कहना है कि वर्तमान में बिजली कंपनियां घाटे में नहीं हैं। जितनी जरूरत है उतनी आय भी बिजली कंपनियों को हो रही है। इसलिए बिजली बिल बढ़ाना ठीक नहीं है।

बिलों में उपभोक्ताओं को फ्यूल एंड पावर परचेस एडजस्टमेंट (एफपीए) चार्ज भी बिल में देना होगा। बिजली बिल में ऊर्जा शुल्क का 4.67 फीसदी ये सरचार्ज जुड़ेगा। इससे 100 यूनिट पर करीब 50 रुपये अतिरिक्त राशि बिल में बढ़ जाएगी। बिजली बिल में सुरक्षा निधि का समायोजन नियमों के अनुसार ही किया जाएगा।विद्युत वितरण कंपनी द्वारा अगले महीने से बिलों में सुरक्षा निधि बढ़ाई जाएगी। ऐसे में बिल में वृद्धि होगी और उपभोक्ताओं पर भार बढ़ जाएगा। दरअसल पिछले साल करीब 20 प्रतिशत बिजली खपत बढ़ी है। ऐसे में अब अगले तीन महीने इसी बढ़ी हुई खपत को तीन किस्तों में कंपनी वसूल करेगी।

बिजली कंपनी 45 दिन की औसत खपत के बराबर की राशि सुरक्षा निधि में जमा कराती है। कंपनी उपभोक्ता के पिछले 12 महीनों के बिलों का विश्लेषण करती है और कुल खपत का औसत निकाला जाता है। निकाली गई औसत मासिक खपत को वर्तमान टैरिफ (बिजली दरों) से गुणा करके मासिक औसत बिल की गणना की जाती है। इसमें फिक्स्ड चार्ज (स्थिर प्रभार), एनर्जी चार्ज और अन्य लागू शुल्क शामिल होते हैं।

दूसरी ओर पिछले चार साल से भोपाल की मध्य क्षेत्र और जबलपुर की पूर्व क्षेत्र वितरण कंपनी मेंटेनेंस की पूरी राशि खर्च नहीं कर पाई है। 2023-24 में पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी को मेंटेनेंस के लिए 289 .64 करोड़ रुपये स्वीकृत हुए थे उसमें सिर्फ 192.10 करोड़ रुपये खर्च कर सकी। वहीं मध्य क्षेत्र वितरण कंपनी ने 50 प्रतिशत और पश्चिम क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी ने 101 प्रतिशत राशि खर्च की।आयोग की ओर से प्रत्येक विद्युत वितरण कंपनी को उपभोक्ताओं की उचित सेवा, उपकरणों, बिजली लाइनों का रखरखाव और जरूरी मेंटेनेंस व कर्मचारियों लाइनमेनों आदि को सुरक्षा उपकरण प्रदान करने के लिए यह राशि दी जाती है, लेकिन उसका पूरा उपयोग नहीं हो रहा है।प्रदेश की बिजली वितरण कंपनियां मेंटेनेंस में कोताही बरत रही हैं। इंदौर की पश्चिम क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी को छोड़ दें तो भोपाल की मध्य क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी और जबलपुर की पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी ने करोड़ों रुपये मिलने के बावजूद मेंटेनेंस पर ध्यान नहीं दिया, लिहाजा लगभग आधी राशि ही खर्च कर पाए। नतीजा हल्की वर्षा, हवा में बिजली बंद हो रही है। लोड बढ़ने पर उपकरण खराब हो रहे हैं। वर्षा सीजन शुरू होते ही बिजली ट्रिपिंग और फाल्ट की संख्या में इजाफा हो गया है।

बिजली की बाजीगरी हर बार उपभोक्ताओं की जेब पर ही बोझ बढ़ाती है।निजी विधुत उत्पादन कम्पनियों से बिना बिजली खरीदे हजारों करोड़ रूपए भुगतान करने का कारनामा बिजली कम्पनियां कर रही है।सरकारी पावर प्लांट को भले ही कम बिजली उत्पादन करना पङे,लेकिन निजी बिजली खरीदी भरपूर हो रही है।छोटे उपभोक्ता महंगी बिजली दर की मार से और राज्य सरकार बिजली कम्पनियों को दिया जाने वाला अनुदान से परेशान है। जबकि 1948 का इलेक्ट्रिसिटी एक्ट उद्देश्य था कि बिजली को सेवा क्षेत्र में रखकर सभी को उचित दर बिजली उपलब्ध कराना, वहीं विधुत अधिनियम 2003 का उद्देश्य बिजली को “लाभ(लूट) का धंधा “बना कर रोशनी सिर्फ अमीरों के लिये रखना।

राज कुमार सिन्हा | बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ

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