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भारत में बांधों को सिंचाई, बिजली और बाढ़ नियंत्रण का जरिया माना जाता है, लेकिन हालिया अनुभवों ने उनकी सीमाएँ उजागर कर दी हैं। हिमाचल और जम्मू-कश्मीर की बारिश से भाखड़ा, पौंग और रंजीत सागर बांधों से छोड़े गए पानी ने पंजाब को डुबो दिया। गलत संचालन और अनियोजित विकास ने बाढ़ आपदा को और गहरा कर दिया है।
 
भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा बांध निर्माण करने वाला देश है, जिसमें 6000 से अधिक पूर्ण बड़े बांध हैं जो सिंचाई, बाढ़ नियंत्रण, जलविद्युत उत्पादन, पेयजल आपूर्ति और मछली उत्पादन सहित कई उद्देश्यों की पूर्ति के लिए बांधों पर अत्यधिक निर्भर करता है। अध्ययनों से पता चलता है कि बांधों ने भारतीय नदी घाटियों में बाढ़ को कम भी किया और शुरू भी किया है। लेकिन वर्तमान और भविष्य की जलवायु परिवर्तन के दौर में बाढ़ को कम करने में बांध कितना प्रभावी होगा यह संदिग्ध है।हर बांध निचले इलाकों में बाढ़ को कुछ हद तक कम करने में मददगार साबित हो सकता है। यह तभी संभव है जब बांध का संचालन इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर किया जाए। हालांकि, जब बांध का संचालन इस उद्देश्य से नहीं किया जाता और पानी उपलब्ध होते ही उसे भर दिया जाता है, तो वही बांध निचले इलाकों में बाढ़ की ऐसी आपदा ला सकता है जिससे बचा जा सकता है।
 
हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में भारी मानसूनी बारिश ने रावी, सतलुज और ब्यास नदियों के ऊपरी जलग्रहण क्षेत्रों में पानी का सैलाब ला दिया। परिणामस्वरूप, रंजीत सागर, भाखड़ा और पोंग बांधों से भारी मात्रा में पानी छोड़ा गया, जिसने पंजाब के मैदानों को जलमग्न कर दिया। इन नदियों में आए उफान ने पंजाब के गुरदासपुर, अमृतसर, पठानकोट, तरनतारन, फिरोजपुर, फाजिल्का, कपूरथला और अन्य जिलों में तबाही मचाई। भाखड़ा, पोंग और रणजीत सागर बांधों का अगस्त–सितंबर 2025 के दौरान संचालन के विश्लेषण से पता चलता है कि गलत संचालन और इन बांधों से कम जल विद्युत उत्पादन ने पंजाब में बाढ़ आपदा को और गंभीर बनाने में अहम भूमिका निभाई है। 2025 के दक्षिण-पश्चिमी मानसून के दौरान पंजाब में एक बार फिर यही हुआ है। ऐसा पहले भी कई बार हो चुका है, उदाहरण के लिए 1978, 1988 और 2023 में।
 
साऊथ एशिया नेटवर्क ऑन डेम,रिवर एंड पीपुल्स के प्रमुख हिमांशु ठक्कर के विश्लेषण अनुसार 1 अगस्त तक, भाखड़ा बांध पहले से ही 53% भरा हुआ था। 19 अगस्त तक बांध में जल स्तर पहले से ही 1666 फीट पर था, जो पूर्ण जलाशय स्तर (एफआरएल) से सिर्फ 14 फीट दूर था और बांध पहले से ही 80% भर गया था। 3 सितम्बर की शाम तक 1678.45 फीट (बांध 93% भरा हुआ) तक पहुंच गया।1 अगस्त तक, पौंग बांध 60% से ज़्यादा भर चुका था और 18 अगस्त तक 85% भर गया था। पौंग बांध के गेट 3 अगस्त को या उसके बाद खोले जा सकते थे, जब बांध में जल स्तर 1365 फीट को पार कर गया था। अंततः, 29 अगस्त से 1 लाख क्यूसेक से अधिक पानी छोङना पड़ा, जिससे हिमाचल प्रदेश और पंजाब के निचले इलाकों में भारी बाढ़ आ गई, क्योंकि तब तक 26 अगस्त को जल स्तर 1393 फीट को पार कर चुका था, जो कि पूर्ण जलाशय जल स्तर 1390 फीट से अधिक था।
 
इस प्रकार पौंग बांध पंजाब में बाढ़ लेकर आया, जबकि पंजाब में भारी वर्षा हो रही थी। पंजाब में बाढ़ की स्थिति गंभीर बनी हुई है, जहां मरने वालों की संख्या बढ़कर 43 हो गई है।1,948 गांव जलमग्न हैं, जिससे 3.84 लाख लोग प्रभावित हैं। इनमें से 21,929 लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है, जबकि 1.72 लाख हेक्टेयर (4.32 लाख एकड़) की फसलें नष्ट हो गई हैं। पंजाब पुनर्गठन अधिनियम 1966) की धाराएं ( 78, 79) गैर- रिपेरियन राज्यों जैसे हरियाणा और राजस्थान को भी पानी का हिस्सा देती हैं, जिससे भाखड़ा और पोंग बांधों में पानी पहले से ही जमा रहता है। इस वजह से ये बांध भारी बारिश आने पर फिर संतुलन खो देते हैं।
 
पंजाब के सिंचाई मंत्री ने 24 अगस्त से रंजीत सागर बांध के संचालन के बारे में कहा कि “जो हुआ वह बिल्कुल अप्रत्याशित था। किसी ने सोचा भी नहीं था कि यह ऐसा होगा। सारे आकलन उलट गए, हिमाचल की ऊपरी नदियों के साथ-साथ पठानकोट की ओर से भी पानी आ रहा था। इसलिए, जब ऊपरी इलाकों से बाढ़ का पानी नीचे आया, तो बांध से कम पानी छोड़े जाने पर भी, नीचे की ओर का सब कुछ वैसे भी डूब जाता। इसके अलावा, अगर बांध को कोई खतरा है, तो पानी छोड़ना ही होगा। बांध को खतरे में नहीं डाला जा सकता।”
यह पंजाब सरकार की स्पष्ट स्वीकारोक्ति है कि उन्होंने हिमाचल प्रदेश के ऊपरी इलाकों और पंजाब के पठानकोट में पहले से हो रही बारिश को ध्यान में नहीं रखा, जिसके कारण 27 अगस्त को अचानक बांध के गेट खोलने पड़े, जिससे पंजाब में बड़ी बाढ़ आपदा आई। तकनीकी समिति के सभी सदस्य, जिनमें केंद्रीय जल आयोग और संबंधित राज्य पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश (कभी-कभी भारतीय मौसम विज्ञान विभाग और पंजाब कृषि विभाग के व्यक्ति भी आमंत्रित किए जाते हैं ) शामिल हैं, जो भाखड़ा और पौंग बांधों से पानी छोड़ने के बारे में निर्णय ले रहे थे, स्पष्ट रूप से भाखड़ा और पौंग बांधों के संचालन के लिए जिम्मेदार हैं।
 
ये स्पष्ट है कि भारतीय मानसून असमान और अप्रत्याशित होता है। बांध प्रबंधन को यह तय करना मुश्किल हो जाता है कि कब पानी रोककर रखना है और कब छोड़ना है। गलत अनुमान बाढ़ का खतरा बढ़ा देता है।अगर मानसून की शुरुआत में जलाशय को पहले से लगभग भर दिया जाए, तो अचानक भारी बारिश के समय पानी रोकने की क्षमता नहीं बचती और ज़बरदस्ती बड़ी मात्रा में पानी छोड़ना पड़ता है, जिससे नीचे के इलाकों में बाढ़ और भी बढ़ जाती है।जब कई बांध एक ही नदी प्रणाली पर हों (जैसे सतलुज–ब्यास–रावी में), तो उनके संचालन में बेहतर तालमेल की ज़रूरत होती है। अक्सर यह समन्वय ठीक से नहीं हो पाता है। जहां – जहां बांध के दरवाजे खोले जा रहे हैं या फिर ज्यादा पानी जमा करने के लालच में खोले नहीं जा रहे, वहां – वहां पानी बस्तियों में घुस रहा है। इससे हुई संपत्ति का नुक़सान और लोगों की मौत का आकलन करें तो पाएंगे कि बांध महंगा सौदा साबित हो रहा है। एशियाई विकास बैंक के अनुसार भारत में प्राकृतिक आपदाओं में बाढ़ सबसे ज्यादा कहर बरपाती है। देश में प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले कुल नुकसान का 50 प्रतिशत केवल बाढ़ से होता है। मौजूदा हालात में बाढ़ महज़ एक प्राकृतिक आपदा नहीं रह गई है, बल्कि मानवजनित साधनों की त्रासदी बन गई है।
 
पंजाब में अचानक आई बाढ़ का मुख्य कारण हिमाचल प्रदेश और पंजाब दोनों में अनियोजित आर्थिक विकास है। आर्थिक प्रगति को बढ़ावा देने के उद्देश्य से की गई इस वृद्धि ने पहाड़ी और मैदानी इलाकों में अंधाधुंध वनों की कटाई, नदियों पर बड़े बांधों का निर्माण, नदी तल, मौसमी नालों, जल निकासी चैनलों, तालाबों और अन्य जल निकायों पर अतिक्रमण और जल संसाधनों के रखरखाव में लापरवाही को बढ़ावा दिया है। इन सभी कारकों ने वर्तमान संकट को बढ़ावा दिया है, जो सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करता है। पंजाब में 2025 की बाढ़ ने साफ़ दिखा दिया कि बड़े बांध, जिन्हें अक्सर “बाढ़ नियंत्रण” के उपाय के रूप में प्रचारित किया जाता है, असलियत में इस भूमिका में ज़्यादातर असफल साबित होते हैं।
राज कुमार सिन्हा I बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ 

 

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