
फैलते शहर, उजङती बस्तियां और सिसकता जीवन
“किसकी है जनवरी, किसका अगस्त है? कौन यहां सुखी है, कौन यहां मस्त है? महल आबाद है झोपड़ी उजाङ है, गरीबों की बस्ती में उखाड़ है पछाड़ है।” बाबा नागार्जुन की कविता...
“किसकी है जनवरी, किसका अगस्त है? कौन यहां सुखी है, कौन यहां मस्त है? महल आबाद है झोपड़ी उजाङ है, गरीबों की बस्ती में उखाड़ है पछाड़ है।” बाबा नागार्जुन की कविता...