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बक्सवाहा के जंगल के नीचे हीरे पाए जाने की खोज जबसे रियो टिंटो कंपनी ने की है, तब से बक्सवाहा क्षेत्र के भौतिकवादी विकास और रोजगार के अवसरों की चर्चा जोरों पर है, स्थानीय लोगों की अपनी अलग – अलग सोच और विकास के मापदण्ड है और शहरी लोगो ने  कोरोना काल में  ऑक्सीजन का जो संकट झेला है, भले ही प्राणवायु और कृत्रिम ऑक्सीजन में अंतर जरूर हो, लेकिन जंगल बचाने की हाय- तौबा है।
2017 में रियो टिंटो कंपनी का बक्सवाहा हीरा खनन परियोजना से अलग होने के बाद यह प्रोजेक्ट अब बिड़ला समूह की एस्सेल माइनिंग एंड इंडस्ट्री लिमिटेड कंपनी के पास है, जिसने 382.181 हेक्टेयर जमीन पर 56 हजार करोड़ के ऑफसेट मूल्य पर 50 साल की माइनिंग लीज जीती है इस पर खनन कार्य होना है और इस परियोजना से स्थानीय लोग रोजगार और विकास की आस लगाए बैठे हैं।
इतिहास बताता है कि महाराजा छत्रसाल ने 17 वीं शताब्दी के अंत में अपने गुरू प्राणनाथ जी की आज्ञा से पन्ना को अपनी रियासत की राजधानी बनाया साथ ही प्राणनाथ जी ने पन्ना रियासत की सुख समृद्धि तथा मुगलों से रियासत की रक्षा हेतु बुंदेल केसरी महाराजा छत्रसाल को आशीर्वाद दिया कि सूर्योदय से पूर्व तुम जितनी जगह नाप दोगे वह हीरा से ढक जाएगी- “छत्ता तोरे  राज में धक-धक धरती हुई, जित – जित घोड़ा पग धरे। तित- तित  हीरा होय।। आज विंध्य प्रदेश में हीरा पाए जाने की वास्तविकता इस किंवदंती की कोमल चमक से अधिक भिन्न नहीं है आज भी मध्य प्रदेश का हीरा खनन क्षेत्र यही है जो मध्य प्रदेश को हीरा प्रधान राज्य बनाता है। बक्सवाहा हीरा खनन परियोजना से 150 किलोमीटर दूर पन्ना जिले में पन्ना टाइगर रिजर्व से लगे मझगुवा में राष्ट्रीय खनिज विकास निगम NMDC 1968 से खनन कार्य कर रहा है लेकिन बेशकीमती हीरा पन्ना की जमीन से निकलने के बाद पन्ना के लोगों व पन्ना के विकास को कहां तक पहुंचा पाया?
 विंध्याचल पर्वतमाला की कैमूर श्रेणी में अवस्थित पन्ना जैव विविधता से सराबोर है 1981 में यहां राष्ट्रीय उद्यान बनाया गया,  जिसे 1994 में टाइगर प्रोजेक्ट के रूप में शामिल किया गया। यह देश के सबसे अच्छे रेप्टाइल पार्क के रूप में जाना जाता है। यहां केन घड़ियाल अभ्यारण भी है।  राष्ट्रीय उद्यान के आसपास एनएमडीसी द्वारा खनन कार्य किया जा रहा है हीरा खनन परियोजना द्वारा हीरे के निष्पादन हेतु 113.331 हेक्टेयर भूमि का उपयोग खनिज पट्टे के रूप में तथा 162.631 हेक्टेयर भूमि का उपयोग निष्पादन संयंत्र व कार्यालय हेतु  भूमि पट्टे के रूप में उपयोग की जा रही है। एक अनुमान के मुताबिक पन्ना में 22 लाख कैरेट हीरा पाया जाता है जिसे पिछले 60 सालों से निकाला जा रहा है इस हीरे की चमक के पीछे स्थानीय गांव के लोग विस्थापित होने को तैयार हुए ताकि उनकी पीढ़ियों का भविष्य उज्जवल हो और पन्ना क्षेत्र का विकास हो सके। पन्ना से 17 किलोमीटर दूर मझगुआ में हीरा खनन के लिए गजराज गौण के पिताजी ने अपनी 30 एकड़ जमीन व 60 मवेशियों  का मोह छोड़, हिनौता गाव में 5 एकड़ जमीन पर विस्थापित हो गए क्योंकि उनका मानना था कि एनएमडीसी एक राष्ट्रीय कंपनी है जो यहां के लोगों के जीवन में सुधार करेगी, गजराज कहते अगर आज पिताजी जीवित होते तो उन्हें एहसास होता कि उनका बलिदान व्यर्थ गया। एनएमडीसी ने पन्ना टाइगर रिजर्व की जैव विविधता को नष्ट किया है। टाइगर रिजर्व जो मानव हस्तक्षेप से मुक्त माना जाता है फिर भी सुप्रीम कोर्ट ने 2008 में आदेश दिया कि एनएमडीसी अगले 5 वर्षों तक कार्य कर सकती उसके बाद का फैसला एक निगरानी समिति करेगी। निगरानी समिति ने 2016 में खनन कार्य बंद करने को कहा और यह क्षेत्र 30 जून 2018 तक पन्ना टाइगर रिजर्व को सौंपने का आदेश दिया। लेकिन पर्यावरण मंजूरी  न मिलने के बाद भी 31 दिसंबर 2020 तक खदान का संचालन जारी रहा, इस दौरान हीरा खनन से 13 लाख कैरेट हीरे का उत्पादन किया जा चुका है जानकारी के मुताबिक 9 लाख कैरेट हीरे का खनन बाकी है। फिलहाल हीरा खनन बंद है क्योंकि खनन का शेष कार्य राष्ट्रीय उद्यान के हिस्से में होना है लिहाजा मामला उच्चतम न्यायालय में है लेकिन राजनीतिक सोच किसी भी कीमत पर खदान चालू करने के मूड में है उन्हें पर्यावरणीय असंतुलन से कोई मतलब नहीं है राज्य सरकार ने अगले 20 साल यानि 2040 तक खदान को संचालित करने की इजाज़त दे दी है।
हीरा खनन परियोजना के गांव मझगवा, हिनोता, जरुआपुर, मसूदा आदि में हीरा खनन के सिवाय दूसरा कोई काम नहीं है लेकिन ये काम तो आम आदमी को मिलता नहीं, राष्ट्रीय खनिज विकास निगम के सार्वजनिक रूप से उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार 2010-20 के बीच मझगवा खदान से 187 लोगों को स्थाई रोजगार व 163 व्यक्तियों को दिवस रोजगार मिला है, जो बहुत कम तो है ही लेकिन वास्तविकता इससे भी उलट है क्योंकि यह कुल रोजगार है जो पन्ना शहर के साथ बाहरी लोगों को भी मिला है।
स्थानीय लोगों में किसी को भी स्थाई रोजगार नहीं दिया गया, कुछ ठेकेदारों के साथ ठेका मजदूरी मिली है एक ठेकेदार बताते है कि एनएमडीसी की कॉलोनी में संविदा कर्मचारियों को प्रतिदिन ₹500 मिलते, लेकिन शायद ही कभी 10 दिनों से अधिक का रोजगार मिला हो, कोरोना महामारी के दौर में लॉकडाउन के समय वह भी घटकर महीने में दो-तीन दिन रह गया।
हीरा खनन  परियोजना की जमीन उथली होने के कारण कुछ ठेकेदार व अमीर लोग जरूर खनन परियोजना की मुख्य भूमि से दूर भाग्य आजमाते है जिसमें असंगठित मजदूरों को लगाकर पत्थर खनन, उसके बाद मिट्टी को खोदना और उसे छानना आदि कार्य दैनिक मजदूरी पर करना पड़ता, जो  काम  शारीरिक रूप से मेहनती होने के साथ कठिन है,  इसमें असंगठित मजदूर होते, जिन्हें बहुत कम पैसा मिलता और इसमें काम करते हुए वे सिलकोसिस और एनिमा जैसी बीमारी से ग्रसित हो जाते, उनकी  पैदा होने वाली संताने कुपोषण का शिकार है।
रवि कांत पाठक कहते हैं कि हमेशा “दूर के ढोल सुहावने होते है”  हमारा जिला डायमंड सिटी के नाम से जाना जाता लेकिन हमारी स्थिति ” दिया तले अंधेरा” की  है। पीने का पानी तक नहीं हमें मिलता, हमारे शहर में चंदेल कालीन 13 तालाब थे इससे हमें कभी पानी की कमी नहीं पड़ती थी लेकिन आज हमारे सभी जल स्रोत क्षतिग्रस्त होने के साथ-साथ जल संसाधनों का पूरा दोहन हीरा खनन के लिए किया जाता है।
विद्या आदिवासी बताती है कि गांव में रोज सुबह 8:00 बजे महज 15 मिनट के लिए पानी की आपूर्ति होती “हर दिन पानी भरने के लिए लंबी कतार लगती है और हमेशा पानी को लेकर लड़ाई चल जाती है पर्याप्त मात्रा में पानी भरना बहुत मुश्किल है”  “पीने के पानी के लिए टंकी बनाकर पाइप लाइन जरूर डाली गई लेकिन इसमें  चरणामृत की तरह  पानी आता है। महिलाएं आज भी 1 किलोमीटर दूर से पीने का पानी लाती है। बुनियादी सुविधाएं पूरी तरह से खत्म है हमारा जंगल भी गया और रोजगार भी, बदले में हमें खनन की धूल से बीमारियां मिल रही है। एनएमडीसी अपने अनुबंध के तहत दिन में 2 बार हिनोता से पन्ना बस सेवा प्रदान करता, 1 प्राथमिक व माध्यमिक विद्यालय संचालित करता तथा एक स्वास्थ्य केंद्र संचालित है यह केवल प्राथमिक उपचार तक सीमित है अधिकांश उपचारों के लिए पन्ना जाना  पड़ता है इस प्रकार बुनियादी सुविधाएं “ऊंट के मुंह में जीरा” के समान है गांव के बुजुर्ग व्यक्ति “जी को माल टाल  ओई खा खरा रोटी” (जिसका सबकुछ उसी को नमक, रोटी) यह कहावत कहते हुए अपनी गुस्सा जाहिर करते हैं।
कुछ आदिवासी दिल्ली, जम्मू जाकर मजदूरी करते हैं। फिर भी गांव के कुछ लोग आश्वस्त हैं कि एनएमडीसी  जब खदान फिर से शुरू करेगी तो निष्पक्षता के साथ काम करने के साथ हमारी मांगो को दुबारा सुना जाएगा। अभी हालात बद से बदतर है।
यदि हम पन्ना  जिले की बात करें तो यह अपने पड़ोसी  जिलों छतरपुर, सतना से विकास के सभी मापदंडों शिक्षा, स्वास्थ्य, अधोसंरचना विकास में बहुत पीछे हैं। हर चुनाव में यहां एक ही मुद्दा रहता है कि हमें अच्छा स्वास्थ्य और शिक्षा दी जाए। पंकज जैन कहते हैं कि यदि कोई व्यक्ति बीमार होता है तो  वह पन्ना जाने की वजह सतना जाना पसंद करता, क्योंकि पन्ना के अस्पताल जाकर तो मरना ही है, तो सतना ही चले जाए, हो सकता बच जाए। नौजवान बच्चे अपने पड़ोसी जिले छतरपुर या सतना में जाकर पढ़ाई करते हैं।
2018 के आंकड़ों के अनुसार यदि हम बात करें तो मानव विकास सूचकांक में मध्य प्रदेश के 52 जिलों में पन्ना का 48 वां स्थान है इस प्रकार यह मध्य प्रदेश के पांच अति पिछड़े जिलों में शामिल है। इससे हम बेहतर अंदाजा लगा सकते हैं कि जिस इलाके की जमीन हीरा उगल रही है, उस इलाके की तस्वीर और तकदीर कितनी बदली।
हीरा खनन से प्रभावित पन्ना जिला एवं वहां के गांवों   की स्थिति का अध्ययन इसलिए महत्वपूर्ण है कि हम सोच  और समझ सकें, कि  बक्सवाहा के जंगलों को काट कर अगर वहां के लोगों की रोजी-रोटी का जरिया छीना गया! तो क्या हीरा खनन करने वाली कंपनी वहां की तस्वीर बदलेगी? अगर आप इसकी तुलना पन्ना की हीरा खदान से करेंगे तो आपको निराशा ही हाथ लगेगी।

Picture courtesy: Ankit Mishra

This is a four-part series done for the Smitu Kothari Fellowship and published in the Newspaper Subah Savere. You can find all the other parts of the story here.

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