दो दशक तक नई पेंशन योजना को आज़माने के बाद कई राज्य फिर से पुरानी की ओर जा रहे हैं। लाखों कर्मचारी सेवानिवृत्ति के बाद बेहतर जीवन की मांग कर रहे हैं, वहीं केंद्र सरकार बार बार वित्तीय संकट का हवाला दे रही है।  यदि धन की कमी मुद्दा है तो क्या राजस्व में अपर्याप्त वृद्धि के बारे में पूछना प्रासंगिक नहीं है? उदारीकरण के बड़े-बड़े वादों और कॉरपोरेट्स को टैक्स में दी गयी भारी छूट का क्या हुआ? क्यों राजस्व की तिजोरी हमेशा शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे सामाजिक व्यय में कमी करके ही भरी जाती है!!!

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