अचानक से एक के बाद एक अमेरिकी बैंक धराशायी हो रहे है। इस बार बॉन्ड मार्केट्स ने उन्हें फेल कर दिया है। आज भारतीय बैंक भी जनता को छोड़कर बाजार में अधिक निवेश पर जोर दे रहे हैं। वहीं जनता भारी बैंक शुल्क, रोज़ बंद होती ग्रामीण शाखायें और ऋण की कमी से जूझ रही है। क्या भारतीय बैंक अमेरिका के इस संकट से कुछ सीखेंगे?
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