मध्य प्रदेश सरकार ने अडानी पावर के साथ में 320 मेगावाट बिजली के पर्चेस एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किया है। सरकार ने इससे पहले ही 20331 मेगावाट बिजली खरीदने के पी.पी.ए. पर विभिन्न कंपनियों के साथ समझौते किए हुए हैं जिसके कारण अरबों रुपए बिना बिजली खरीदे उन कंपनियों को भुगतान करना पड़ता है। मध्यप्रदेश में बिजली की मांग 9000 मेगावाट बनी हुई है और 20331 मेगा वाट एग्रीमेंट पहले से हैं ऐसे हालात में अदानी के साथ नया समझौता करना प्रदेश की आर्थिक स्थिति को और बदहाल करने जैसा है। अब अदानी का उत्पादन शुरू होते साथ सरकार को उसे बिना बिजली खरीदें 5 करोड रुपए की रकम अदा करनी पड़ेगी। इसके साथ-साथ में सबसे बड़े चौंकाने वाली बात यह है कि इस बिजली प्रोजेक्ट से सरकार ने जिस भाव में बिजली खरीदी थी उससे 4 गुने भाव बढ़ा कर अदानी को दिए गए हैं।
देश और दुनिया कोरोनावायरस महामारी के इस सकंट को फैलने से बचाने मे लगे है। लाखों मजदूर भुखे और प्यासे पैदल आपने गाँवों की और लौट रहे है। यह कहना भी असंगत नहीं होगा की यह अनियोजित लॉकडाउन केवल मजदूर वर्ग के लिये ही है। लेकिन इस दौर में दूसरी ओर सरकारें और निजी कंपनियां अपने काम बडी तेजी से निपटाने मे लगी। मध्यप्रदेश सरकार ने अडानी की छिदवाड़ा पेचं थर्मल पावर परियोजना के साथ बिजली खरीद करार किया। इसकी सार्वजनिक जानकारी समाचार पत्रों 27 मई को मिली जब मध्यप्रदेश सरकार ने सूचान दी। यह परियोजना 1320 मेगावाट क्षमता की कोयले पर आधारित है। जहाँ पूरी दुनिया कोयले से जुडे सभी उद्योगों से दूर जा रही है वहीं मध्यप्रदेश, भारत द्धारा किये गये पेरिस समझौते के विरोधाभास में जलवायू में कार्बन उत्सर्जन में योगदान कर रहा है।
भारत सरकार के सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यन्वयन मंत्रालय की 2019 की रिर्पोट के अनुसार मध्यप्रदेश मे 20331 मेगावाट बिजली उत्पादन की क्षमता पहले से ही स्थापित है और उसकी मांग 9000 मेगावाट है। इस आधार पर प्रदेश में सरप्लस बिजली उपलब्ध है। तो फिर सवाल उठता है की उसके बावजूद ऐसी कौन सी जल्दबाजी है जिससे मध्यप्रदेश सरकार को अदानी से 1320 मेगावाट बिजली खरीद का करार करना पड रहा है? इस तरह की बिजली खरीद करार का किसको फायदा होने वाला है? और इसके क्या महत्वपूर्ण कारण हैं ?
मध्यप्रदेश में बिजली के बढते वित्तीय घाटे जनता की जेब पर भारी पड़ रहे हैं, दूसरी तरफ राज्य अपने सरकारी बिजली घरों को बंद कर निजी बिजली कंपनियों से ऊँची दरों पर बिजली खरीद रही है। सतपुड़ा थर्मल पावर परियोजना की 210 मेगावाट वाली इकाइयों को सरकार ने बंद कर दिया जो की सस्ती बिजली दे रही थी। प्रदेश की जल बिजली परियोजनाएं जैसे बरगी, बाणसागर व पेंच जो सस्ती बिजली उपलब्ध करवा सकती है तो क्या उनसे बिजली नहीं ली जा रही है। इसके अलावा सरकार ने कई निजी पावर कम्पनियों से नियत प्रभार (फिक्स चार्ज) के करार कर रखे है जिसके कारण राज्य सरकार को हर साल बिना बिजली लिये हजारों करोड़ रूपये चुकाने पड़ रहे हैं। राज्य विध्यूत नियामक आयोग के टैरिफ आदेश 2019 – 20 अनुसार गत वर्ष सरकार ने नियत प्रभार (फिक्स चार्ज) परियोजनाओं को 2034 करोड़ रु देने का प्रावधान किया गया जो कि गैर जरूरी था। विगत माह में राज्य सरकार ने नर्मदा घाटी में 26 साल पुरानी महेश्वर बिजली परियोजना के समझौते को रद्द कर दिया। इस परियोजना सें 18 रूपये प्रति यूनिट बिजली का करार किया गया था। यह स्पष्ट करता है कि ये बिजली खरीद करार राज्य बिजली वितरण कम्पनियों को वित्तीय सकंट में धकेल रहे हैं। इसके कारण राज्य बिजली वितरण कम्पनीयां लगातार वित्तीय संकट का सामना कर रही है।
हालाकि बडी जल विधुत और सौर्य परियोजनाओ से सस्ती बिजली मिलना इन परियोजनाओ से हुये सामाजिक पर्यावरिणीय नुकसान को सही ठहराता। बल्कि हमको ऐसे विकल्पो के बारे मे तैयार करने होगे जो बिना किसी बडे सामाजिक, पर्यावर्णीय और आर्थिक नुकसान के सभी को सतत् और समान बिजली मिले। बिजली केवल एक वर्ग की विलासिता का साधन ना बन कर रह जाये। लेकिन अब तक जिन परियोजनाओं को सामाजिक, पर्यावर्णीय और आर्थिक तबाही कर स्थापित किया गया है उनको लोगो को सस्ती बिजली पहुचाने मे उपयोग किया जाना चाहिये।
अखिल भारतीय पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के प्रवक्ता श्री वीके गुप्ता का कहना है कि मध्य प्रदेश में औसत बिजली मांग 9000 मेगावाट और अधिकतम मांग 14500 मेगावाट है जबकि राज्य ने पहले ही 21000 मेगावाट के बिजली खरीद करार पर हस्ताक्षर किए हैं। इस सकंट में बिजली लिये बिना वितरण कम्पनियों को 2000 करोड़ से भी अधिक का भुगतान करना पड़ रहा है। अडानी बिजली परियोजना के साथ बिजली खरीद का समझौता एक गैर जरूरी समझौता समझा जा सकता है।
राज्य मे बिजली परियोजनाओं का प्लांट लोड फैक्टर पहले से ही कम था लेकिन कोरानावायस के कारण बिजली की मांग और कम हो गई है। ज्ञात हो कि राज्य बिजली वितरण कम्पनीयों ने नौ बिजली खरीद करार कर रखे हैं। वर्तमान में बिजली की कम मांग को देखते हुये उनमें से चार निजी बिजली कम्पनियां टोरेंट पावर, बीएलए पावर, जेपी बीना पावर और एस्सार पावर बिजली की आपूर्ति नहीं करेंगे। लेकिन राज्य वितरण कम्पनी को इन निजी पावर कम्पनियों को बिजली की एक युनिट लिये बिना भी निर्धारित शुल्क का भुगतान करना पडेगा।
पूर्व अतिरिक्त मुख्य अभियन्ता मध्यप्रदेश पावर जनेरेटिंग कम्पनी लिमिटेड, श्री राजेन्द्र अग्रवाल का कहना है कि राज्य के पास अगले 10 वर्षों के लिए सरप्लस बिजली मौजूद है। लेकिन अडानी पावर की पेंच थर्मल एनर्जी लिमिटेड के साथ बिजली खरीद का समझौता सासन बिजली परियोजना से भी अधिक महंगा है। सासन की प्रति यूनिट दर 1.194 रु थी जबकि अडानी परियोजाना की प्रति यूनिट दर 4 गुना लगभग 4.79 प्रति यूनिट पड रही है जो कि अब तक की सबसे ऊँची दर पर करार किया गया है। यह मनमानी और बिना पारदर्शिता के किया जा रहा है। यह करार 25 वर्ष की अवधि में 1 लाख करोड रु से भी अधिक का नुकसान राज्य वितरण कपंनी को दे सकता है। यह भारत की टैरिफ नीति का पूर्ण उलघन्न है।
एक ओर राज्य सरकार कोयले पर आधारित महंगी बिजली परियोजनों से बिजली खरीदने के करार कर रही है और दूसरी ओर नवीकरणीय उर्जा आधारित परियोजनाओं जैसे सौर और पवन चक्की से मिलने वाली प्रति यूनिट बिजली के दाम पिछले कुछ सालों से लगातार गिरते जा रहे हैं। सौर उर्जा की प्रति यूनिट दर आज रु २.९४ प्रति यूनिट तक पहुँच गयी है। तो फिर सवाल ये भी उठता है की एक ओर तो केंद्र सरकार द्वारा सस्ती नवीकरणीय उर्जा को बढ़ावा दिया जा रहा है और दूसरी ओर राज्य सरकारें कोयले आधारित परियोजनाओं से बिजली खरीदने के करार क्यो कर रही है‘।
अडानी परियोजना के साथ बिजली खरीद का समझौता किसी भी नजरिये से सही नही है। बिजली क्षेत्र पहले से ही वित्तीय सकंट का सामना कर रहा है और प्रदेश मे स्थापित निजी बिजली कंपनियां पहले से ही वित्तीय संकट में है और सरकार से उनकी वित्तीय जमानत के लिये गुहार लगा रही है। ऐसी परिस्थितियों में अडानी के साथ अतिरिक्त बिजली खरीद समझौते आनावश्यक है। यह राज्य सरकार को और राज्य वितरण कंपनियो के साथ प्रदेश की जनता पर भी अतिरिक्त भार डालेगा। यह बिजली खरीद समझौते के अनुसार सरकार को यह भुगतान 25 वर्षों तक करना पड़ेगा। यह प्रदेश की जनता से बिजली के दर बढ़ाकर हजारो करोड़ रूपये वसूले जा सकने का रास्ता खोलेगा।
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