सेवा

श्री आर के सिंह

राज्य मंत्री-बिजली और नई और नवीकरणीय ऊर्जा

श्रम शक्ति भवन, भारत सरकार

नई दिल्ली -110001

                                                      5 जून 2020

विषयः नागरिक समाज समूहों की ओर से विद्युत (संशोधन) विधेयक 2020 के
मसौदे पर टिप्पणियां और आपत्तियां।

महोदय!

यह केंद्रीय विद्युत् मंत्रालय द्वारा प्रस्तावित ड्राफ्ट बिजली (संशोधन)
विधेयक, 2020 के सन्दर्भ में है, जो 17 अप्रैल, 2020 को एक पत्र के
द्वारा (देखें: सं. 42/6/2011-R&R(Vol-VIII)) ऑनलाइन जारी किया गया था,
जिसमें विभिन्न लोगों को 21 दिन के अन्दर अपनी टिपण्णी देनी थी, यानि 8
मई, 2020 तक। देश के एक अहम् कानून में संशोधन करने की कोशिश, जब पूरा
देश लॉकडाउन में था और लगभग सभी तरह की मौलिक स्वतंत्रता उपलब्ध नहीं थी,
यहाँ तक की निलंबित थी, ऐसे में इस कदम के व्यापक विरोध के चलते, 27
अप्रैल, 2020 को मंत्रालय के द्वारा जारी पत्र में टिपण्णी देने की
समयसीमा को बढ़ा कर 5 जून, 2020 किया गया (देखें: सं.
42/6/2011-R&R(Vol-VIII))।

सीधे तौर पर, सरकार का लॉकडाउन के समय एक अहम् कानून को संशोधित करने के
प्रस्ताव पर ज़ोर देना, जिसका भारत के लोगों के आर्थिक, सामाजिक और
पारिस्थितिक सुरक्षा पर एक सीधा प्रभाव होगा, वो मौलिक रूप से लोकतंत्र
के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है। संवैधानिक मांगों के अनुसार, कानून बनाना
या मौजूदा कानूनों में संशोधन करना, तब ही शुरू किया जाना चाहिये जब
लोकतान्त्रिक रूप से निर्णय लेने की प्रक्रिया पूर्ण रूप से कार्यात्मक
हो और संसद लोगों की ओर से अपनी सक्षम एवं निरीक्षण भूमिका का पालन कर
सके। ऐसा लॉकडाउन के दौरान संभव नहीं है, जब अधिकतर मौलिक स्वतंत्रता,
खासकर संघटित होने और अपनी राय और मतभेद अभिव्यक्त करने की आज़ादी, जो
भारतीय संविधान के धारा 19 में प्रतिष्ठापित है, और साथ ही अपने
प्रतिनिधियों का चुनाव करना लोगों के लिये उपलब्ध नहीं है। परिणामस्वरूप
एक अहम् कानून में विस्तारपूर्ण संशोधन पर लोगों के टिपण्णी देने की
प्रक्रिया शुरू करना एक अत्यंत असंवैधानिक कदम है और इसलिये यह एक तरह से
नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर एक सीधा हमला है। साथ ही यह मुख्य कानून
के उद्देश्य के विपरीत है – जो है जनहित को आगे ले जाना। इस स्पष्ट
दृष्टिकोण के साथ, हम सिविल सोसाइटी के संगठन और सदस्य इसके नीचे बाकि और
कारण सौंपते हैं की क्यों इस प्रस्तावित संशोधन को खारिज कर देना चाहिये।

टिपण्णी

1. विद्युत अधिनियम का 2003 संस्करण विद्युत् क्षेत्र में कॉर्पोरेट
घरानों को बढ़ावा देने और उसे बाज़ार के अनुकूल बनाने के लिये लाया गया था।
हालाँकि, ट्रेड यूनियनों और पर्यावरणीय एवं सामाजिक आंदोलनों के व्यापक
एवं अथाह प्रयासों के चलते, विभिन्न सामाजिक एवं पर्यावरणीय सुरक्षा
नीतियों को विद्युत् उत्पादन के हर पहलू में शामिल किया गया। यह
प्रस्तावित संशोधन उन्हीं सुरक्षा नीतियों की उसी बुनियाद पर हमला करता
है और ऐसे कानून को बढ़ावा देता है जो खुले तौर पर निवेशकों एवं उद्योगों
का हितैषी है, जो जनहित के ऊपर मुनाफे को ज़्यादा महत्त्व देता है और
जिसमें उपभोक्ताओं के अधिकार, परियोजना-प्रभावित समुदाय, प्राकृतिक
सम्पदा और प्रकृति की रक्षा करने का ज़रा सा भी प्रयास नहीं है।

2. यह प्रस्तावित संशोधन बिजली उत्पादन, संचरण और वितरण को एक बेहद
केन्द्रित तरीके से संगठित करता है, और विभिन्न राज्य एवं ज़िला स्तर के
संस्थागत तंत्र, जो वर्तमान रूप में विद्युत् क्षेत्र के विकेंद्रीकरण को
सुनिश्चित करते हैं, उन्हें बेअसर कर देता है, और यहाँ तक की उन्हें एक
तरह से खत्म ही कर देता है, खासकर इसमें विद्युत् अनुबंध प्रवर्तन
प्राधिकरण (ई.सी.ई.ए.) स्थापित करने के प्रस्ताव से। यह ई.सी.ई.ए. वो
अधिकार भी छीन लेता है जो राज्य विद्युत् नियामक आयोग के अन्तर्निहित
हैं। ऐसे बदलाव संविधान के खिलाफ हैं क्योंकि विद्युत् उत्पादन समिति
सूची में है और मौलिक रूप से राज्यों को योजना बनाने, उत्पादन और वितरण
में शामिल करने के लिये बाध्य है।

3. यह प्रस्तावित संशोधन सारे राज्यों में समान टैरिफ को बढ़ावा देता है,
जो उचित रूप से सार्वजनिक तौर पर योजना बनाने के स्वरुप के विपरीत है।
इसके चलते, वो राज्य और ज़िले जो बिजली उत्पादन के लिये इस्तेमाल किये
जाने वाले प्राकृतिक सम्पदा का भारी नुकसान सहते हैं, और उस उत्पादित
बिजली से लाभ नहीं पाते हैं, वो वही टैरिफ का भुगतान करेंगे, जो बाकि उस
बिजली की खपत बिना कोई नुकसान सहते हुए करेंगे।

4. यह प्रस्तावित संशोधन अवसन्नता और अवैधता के खिलाफ मुकदमा करने के
लगभग सारे अधिकार छीन लेता है जो अभी राज्य विद्युत् नियामक आयोग, हाई
कोर्ट, उपभोक्ता अदालत और केंद्रीय विद्युत् प्राधिकरण और अपीलेट बॉडी
में मौजूद हैं। ऐसे अधिकार ई.सी.ई.ए. को सौंप दिये गये हैं जो विद्युत्
मंत्रालय के सीधे अधिकार-क्षेत्र के अधीन है और इसलिये यह कोई स्वतंत्र
या स्वायत्त इकाई नहीं है। इस देश के शासन के सबसे अहम् पहलुओं में से एक
के लिये, जिस तरह के समीक्षा तंत्र को प्रस्तावित किया जा रहा है, वो ना
सिर्फ चौंकाने वाला है बल्कि निन्दात्मक भी है।

5. यह सब कुछ जताता है की ई.सी.ई.ए. को सिर्फ एक उद्देश्य से लाया जा रहा
है, जो है लाइसेंसधारी के हितों की रक्षा करने के साथ, उसके हितों को
बढ़ावा देना। साथ ही यह एक तंत्र है जो जनहित और भावी पीढ़ियों की कीमत पर
‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ को बढ़ावा दे रहा है।

6. यह व्यापक तौर पर ज्ञात है की मौजूदा कानून के अंतर्गत अधिकतर बिजली
खरीद समझौते, जनहित को आगे ले जाने में असक्षम रहे हैं और फिर भी
लाइसेंसधारी बिना अनुबंधात्मक दायित्व पर खरे उतरे इसका फायदा उठा रहे
हैं – चाहे वो विद्युत् उत्पादन में हो या वितरण में। यह मौजूदा प्रस्ताव
ऐसे विफल होने वाले फ्रैंचाइज़ (विशेष विक्रिय अधिकार) समझौतों को बढ़ावा
देता है। यह अब ग्रामीण इलाकों में स्थिति को और बदतर करेगा जहाँ कोई
निजी फ्रेंचाइज़ी यह दावा करते हुए निवेश नहीं करेगा की वैसे इलाके उनके
लिये कोई लाभदायक उद्यम नहीं है और इसके चलते एक बड़े स्तर की विषमता पैदा
हो सकती है, जहाँ एक तरफ जगमगाते शहर रहेंगे और दूसरी तरफ अंधकार में
डूबे गाँव।

7. यह विधेयक आक्रामक रूप से विद्युत् क्षेत्र के निजीकरण को बढ़ावा देता
है, जो शहरों और ग्रामीण इलाकों के बीच, और उच्च आय वाले क्षेत्र और गरीब
क्षेत्रों के बीच, बिजली की पहुँच की मौजूदा असमानता को और बढ़ावा देगा।

8. यह विधेयक पर्यावरणीय रूप से विनाशकारी विशाल पनबिजली परियोजनाओं को
अक्षय उर्जा के रूप में बढ़ावा देना चाहता है, जो की वो हैं नहीं, और
इसलिये वो पर्यावरणीय रूप से हानिकारक है, जो दुनिया भर में साबित हो
चुका है।

9. इसमें एक साफ़ तौर पर रूपरेखा तैयार की गयी है, जिससे विभिन्न तरीके की
सब्सिडियों को खत्म किया जा सके जो आम लोगों तक बिजली पहुंचाने के लिये
ज़रूरी है। लाखों लोगों के पास बिजली नहीं है, और इस विधेयक के वजह से
उनकी हालत और बदतर ही होगी, क्योंकि उपभोक्ताओं को ऊँचे दर देने पड़ेंगे,
जिससे बिजली एक लग्जरी वस्तु हो जायेगी।

10. प्रस्तावित विधेयक के भाग 37 को मुख्य विधेयक के भाग 176 के साथ
देखने पर, वो सारे राज्यों में एक सर्वस्वीकृत भुगतान सुरक्षा तंत्र को
प्रवर्तित कर देगा। इसके कारण, स्टेट यूटिलिटीज़ के निर्णय लेने के
अधिकारों के साथ समझौता होगा और वो निजी बिजली उत्पदाकों को अग्रिम
भुगतान करने के लिये मजबूर हो जायेंगे। कर्ज़े में डूबे स्टेट यूटिलिटीज़
को अतिरिक्त बिजली के लिये भुगतान करने के लिये मजबूर होना पड़ेगा, तब भी
जब उस बिजली का उत्पादन ही नहीं होगा, जिसके चलते, सरकारी आय को निजी
मुनाफे में बदल दिया जायेगा। क़र्ज़ में डूबे डिस्कॉम ऐसी बाध्यता के बोझ
में ढह जायेंगे।

11. प्रस्तावित विधेयक के भाग 37 और भाग 42 के मुताबिक, जिसे अगर मुख्य
विधेयक के भाग 181 के साथ देखा जाये, तो इसमें एस.ई.आर.सी. के नियम बनाने
के अधिकार को हटाने और एस.ई.आर.सी. का अधिभार और उससे जुड़े साधन को तय
करने की भूमिका को वापस लेने का प्रस्ताव है। इसके कारण, राज्यों को
वित्तीय घाटा सहने का खतरा है, क्योंकि ना ही वो टैरिफ का मोल भाव कर
पायेंगे और ना इससे जुड़े कोई नियम बना पायेंगे। जहाँ तक राज्यों और बिजली
कंपनियों के बीच बिजली खरीद समझौतों की बात है, इस प्रक्रिया में
केंद्रीय दखलंदाजी राज्यों के लिये नुकसानदायक रहेगा और यह शासन के संघीय
स्वभाव के खिलाफ जायेगा। इस तरह से यह विधेयक राज्यों को अपना भविष्य तय
करने के सारे मौजूदा अधिकारों को छीन लेगा। संक्षेप में, यह बिजली
उत्पादन, संचरण और वितरण के प्रबंधन के राज्यों के अधिकारों को छीन लेगा।

12. प्रस्तावित विधेयक के भाग 39, जिसे अगर मुख्य विधेयक के भाग 181 के
साथ देखा जाये, तो यह एस.ई.आर.सी. की भूमिका को अनुबंधों और पी.पी.ए. से
हटा देता है, जबकि उसका बाकी हिस्सा टैरिफ विवादों और दुसरे उपभोक्ता
शिकायतों से सम्बंधित है। इसके फलस्वरूप, यह राज्यों के डिस्कॉम के
वित्तीय संकट को और गहरा कर देगा।

13. इसके इलावा, इस विधेयक में प्रस्ताव है की टैरिफ का भुगतान नहीं होने
की स्थिति में इसका नुकसान डिस्कॉम पर डाल दिया जायेगा, जो इसके चलते
उपभोक्ताओं से वसूला जायेगा। बिजली उत्पादक इससे पूर्ण रूप से सुरक्षित
रहेंगे।

14. प्रस्तावित विधेयक के भाग 3, जिसे अगर मुख्य विधेयक के भाग 2(15)(a)
के साथ देखा जाये, तो उसमें यह प्रस्ताव है की बिजली का सीमा पार से
व्यापार होगा, जिससे सी.ई.आर.सी. की भूमिका क्षीण हो जायेगी, जिसकी ज़रुरत
नियम जारी करने के लिये है।

15.  प्रस्तावित विधेयक के भाग 18, जिसे अगर मुख्य विधेयक के भाग 65 के
साथ देखा जाये, तो इसमें प्रस्ताव है की जो उपभोक्ता बिजली के लिये
भुगतान देने की स्थिति में नहीं हैं, बिल जमा कराने के बाद, उनके बैंक
खाते में प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डी.बी.टी.) के ज़रिये पैसा वापस डाल दिया
जायेगा। उससे कहीं ज़्यादा सरल यह रहेगा की जो लोग भुगतान नहीं कर सकते
हैं, उन्हें बिल ही ना जमा करना पड़े।

16. प्रस्तावित विधेयक के भाग 18, जिसे अगर मुख्य विधेयक के भाग 65 के
साथ देखा जाये, तो इसमें आदेश दिया गया है की सब्सिडी को राज्य सरकारों
द्वारा अग्रिम रूप से सीधे उपभोक्ताओं को जारी किया जाये और इसमें भविष्य
में किसी आश्वासन या आगे चल कर टैरिफ दर तय करने में किसी तरह के सब्सिडी
को टालने के लिये कोई प्रावधान नहीं है। यह क्रॉस-सब्सिडी (एक समूह से
ज़्यादा वसूल कर दूसरे समूह को सब्सिडी देना) को खत्म करता है, और यह
अनुमान लगाया गया है किसी तरह इसका बोझ, राज्यों पर डाल दिया जायेगा,
जिनके पास पहले से ही पर्याप्त पूँजी नहीं है। बिजली सम्बन्धी मुद्दों
में अधिकारों के इस तरह के केन्द्रीकरण के चलते राज्यों पर इसका बोझ
बढ़ेगा।

17. प्रस्तावित विधेयक के भाग 18, जिसे अगर मुख्य विधेयक के भाग 65 के
साथ देखा जाये, तो इसमें सब्सिडी और क्रॉस-सब्सिडी के मुद्दों को
संबोंधित किया गया है जो एस.ई.आर.सी. के निगरानी में आते हैं। अब यह
प्रस्ताव है की इस अधिकार को एक केंद्रीय प्राधिकरण के पास हस्तांतरित कर
दिया जाये और इसके साथ यह निर्देश दिया गया है की देशभर के सारे डिस्कॉम
के लिये समान टैरिफ लागू किया जाये। राज्य-विशेष सब्सिडी और ऐसी अन्य
प्रक्रियाओं के मुद्दों पर विधेयक में कोई स्पष्टता नहीं हैं। इसलिये ऐसा
प्रतीत होता है की यह विधेयक इसलिये नहीं लाया जा रहा है क्योंकि सरकार
लोगों के हितों की रक्षा करने के लिये उत्सुक है, बल्कि इस विधेयक का
मुख्य केंद्र-बिंदु निजी बिजली उत्पादकों को संरक्षित करना है।

18. प्रस्तावित विधेयक के भाग 19, जिसे अगर मुख्य विधेयक के भाग 77 के
साथ देखा जाये, तो उसमें किसी कानूनी सदस्य या अध्यक्ष की नियुक्ति के
लिये मुख्य न्यायाधीश से परामर्श की आवश्यकता को हटाने का प्रस्ताव है।
इसका परिणाम यह है की समूचा विद्युत् क्षेत्र न्यायिक सूक्षम-परीक्षण से
बच जाता है और पूर्ण रूप से कार्यपालिका के निर्णय लेने के अधीन हो जाता
है।

19. मुख्य विधेयक के भाग 126, 135 और 164 में सारे प्रस्तावित बदलाव का
झुकाव विफल हुए तथाकथित निजी-सार्वजनिक-साझेधारी मॉडल अपनाने पर है, जो
मुनाफों का निजीकरण के साथ नुक्सानों का बोझ जनता पर लादने की एक
प्रियोक्ति है। इस कदम का परिणाम यह होगा की वितरण क्षेत्र में फ्रैंचाइज़
को बढ़ावा देने के नाम पर डिस्कॉम का निजीकरण हो जायेगा।

20. प्रस्तावित विधेयक के भाग 37, जिसे अगर मुख्य विधेयक के भाग 176 (2)
के साथ देखा जाये, तो उसमें प्रस्ताव है की पनबिजली शब्द को अक्षय उर्जा
के तौर पर शामिल किया जाये। इसके भाग 3(A) में अक्षय और पनबिजली उर्जा के
स्रोतों से बिजली की खरीदारी का न्यूनतम प्रतिशत तय किया गया है। असल
में, यह खतरनाक रूप से पनबिजली को अक्षय उर्जा के रूप में बढ़ावा देता है,
जो वो है नहीं, और उसे पर्यावरण के अनुकूल बताकर बढ़ावा दिया जा रहा है,
जो की वो निश्चित तौर पर नहीं है।

21. प्रस्तावित विधेयक के भाग 4, जिसे अगर मुख्य विधेयक के भाग 3 के साथ
देखा जाये तो यह एक अलग राष्ट्रीय अक्षय उर्जा नीति लेकर आता है। वैसे तो
अक्षय उर्जा को बढ़ावा देना एक सराहनीय कदम है, पर बिना भूमि अधिग्रहण
अधिनियम के प्रावधानों का पालन किये, विशाल सोलार पार्क के विकास को
बढ़ावा देने के नाम पर, यह ज़मीन के एकाकीकरण को बढ़ावा देने का एक साधन
नहीं बनना चाहिये, जिसके चलते व्यापक तौर पर समुदायों का विस्थापन होगा
और सामूहिक ज़मीन पर कब्ज़ा होगा।

कापीः

(1) सचिव, विद्युत मंत्रालय

(2) निदेशक, विद्युत मंत्रालय

(3) निदेशक, सीईआरसी

नागरिक समाज समूह और सदस्यों द्वारा हस्ताक्षर

नागरिक समाज समूह और सदस्यों द्वारा हस्ताक्षर

1. जनआंदोलन का राष्ट्रीय समन्वय

2. नर्मदा बचाओ आंदोलन, मध्य प्रदेश

3. जनआंदोलन का राष्ट्रीय समन्वय  मध्य प्रदेश

4. जन संघर्ष मोर्चा महाकौशल मंडला-घाट

5. मध्यप्रदेश जनसंघर्ष सम्मान समिति

6. वियोन्ड कोपेनहेगन दिल्ली

7. भारत ज्ञान विज्ञान जत्था दिल्ली

8. सेंटर फॉर फाइनेंशियल अकाउंटिबिलिटी, दिल्ली

9. लोक शक्ति अभियान, ओडिशा

10. जनआंदोलन का राष्ट्रीय समन्वय, ओडिशा

11. जनआंदोलन का राष्ट्रीय समन्वय, राजस्थान

12. एन्वाइरन्मन्ट, सर्पोट ग्रुप, बैंगलोर

13. सिटिजन कंज्यूमर एंड सिविक एक्शन ग्रुप, चेन्नई

14. महेंगी बिजली अभियान, मध्य प्रदेश

15. भू-अधिकार अभियान, मध्य प्रदेश

16. बरगी बांध विस्थपीत एवम प्रभावित संघ, जबलपुर

17. सृजन लोकहित समिति, सिंगरौली

18. रोको तोको थोको क्रान्तिकारी मोर्चा, सीधी

19. चुटका परमाणू विरोधी संघर्ष समिति, मंडला

20. किसान संघर्ष समिति, छिंदवाड़ा

21. भारतीय किसान यूनियन जैतहरी, अनूपपुर

22. वित्तीय जवाबदेही नेटवर्क इंडिया, दिल्ली

23. स्वराज अभियान,जबलपुर

24. लोक जागृति मंच, झाबुआ

25. विंध्य विकास अभियान, सतना

26. राष्ट्रीय किशन कामगार परिषद सतना

27. हमरा आदर्श अभियान रीवा

28. जंगल जीव गाव खेति बचो अभियान सतना

29. झाबुआ पॉवर प्लांट प्रभात संघ सिवनी

30. जिंदगी बचाओ जामिन बचाओ संगठन नरसिंहपुर

31. जन पहल भोपाल

32. नागरीक आदर्श मंच जबलपुर

33. असंगठित मजदूर हुक अभियान जबलपुर

34. बरगी बन्ध मातस्य उत्प्पन अवाम विपनण संघ जबलपुर

35. भारत ज्ञान विज्ञान समिति कटनी

36. पातरकर नागरीक मंच, जबलपुर

37. पोशन अभियान पन्ना

38. सच्चा प्रार्थना समिति जबलपुर

39. खेड़ुत मजदूर चेतना संगठन, अलीराजपुर

40. विंध्याचल जन आन्दोलन, सतना

41. जल जांगल जमींन जीवन बचाओ मंच, सांसद

42. असंगठित श्रमिक अधिकार अभियान, जबलपुर

43. किसान आदिवासी संगठन, होशंगाबाद

44. श्रमिक आदिवासी संगठन, बैतूल-हरदा

45. हमारा ग्राम अधिकार अभियान, रीवा

46. छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन, छत्तीसगढ़

47. माछीमार अधिकार संघर्ष समिति, कच्छ गुजरात

48. जौहर असंगठित मजदूर मंच, झारखंड

49. नागपुर महानगर पालिका कर्मचारी संघ, नागपुर महाराष्ट्र

50. ऑल इंडिया यूनियन ऑफ फॉरेस्ट वर्किंग पीपल

51. जन आंदोलन का राष्ट्रीय समन्वय, बिहार

52. सिविल सोसाइटी महिला संगठन, मेघालय

53.  इन्डिजनस पर्स्पेक्टिव, मणिपुर

54. ऑल लकटक लेक फिशरमेन फोरम, मणिपुर

55. जन आंदोलन का राष्ट्रीय समन्वय, दिल्ली

56. हिमधारा पर्यावरण सामूहिक, हिमाचल प्रदेश

57. मंथन अध्ययन केंद्र, पुणे

58. माटु जन संगठन, उत्तराखंड

59. जौहर असंगठित मजदूर मंच, झारखंड

60. बांधों, नदियों और लोगों का दक्षिण एशिया नेटवर्क

61. दिल्ली सॉलिडैरिटी ग्रुप

62. विकल्प महिला समूह, बड़ौदा, गुजरात

63. दिल्ली फोरम, दिल्ली

64. आंध्र प्रदेश व्यावासाय वृत्तिद्रुला संघ, आंध्र प्रदेश

65. इण्डिंया क्लाइमेट जस्टीस

66. सेक्स वर्कर्स राष्ट्रीय नेटवर्क (एनएनएसडब्ल्यू)

67. नीरज भट्ट, नागरिक उपभोक्ता और नागरिक कार्रवाई समूह, चेन्नई

68. राजेंद्र अग्रवाल, पूर्व अतिरिक्त मुख्य अभियंता एवं एमपी पावर जनरेटिंग कंपनी

69. विली, इंडियन सोशल एक्शन फोरम

70. कृष्णमूर्ति नागराजन बैंगलोर

71. संजीव, दलित आदिवासी शक्ति आधिकार मंच, दिल्ली

72. विनय के श्रीनिवास, एडवोकेट बैंगलोर

73. अशोक श्रीमाली, महासचिव, खान, खनिज और लोग, गुजरात

74. लिंडा, स्वतंत्र पत्रकार, मेघालय

75. महेंद्र यादव, कोशी नवनिर्माण मंच बिहार

76. बिजय भाई, संयोजक, भारत जोड़ों अंदोलन

77. जिगिशा महेता, गूंज, चेन्नई

78. संदीप पटनायक, सेंटर फॉर पब्लिक पॉलिसी अल्टरनेटिव भुवनेश्वर, ओडिशा

79. श्रीधर रामामूर्ति, एन्वारोनिक्स ट्रस्टए दिल्ली

80. उलका महाजन, सर्वहारा जन आंदोलन, रायगढ़ महाराष्ट्र

81. उस्मान शेरसिया, सचिव, राष्ट्रीय मछुआरा मंच, गुजरात

82. डॉ सुनीलम, पूर्व विधायक समाजवादी पार्टी, मध्य प्रदेश

83. रवींद्रनाथ, रिवरबेसिन फें्रन्डस, असम

84. रवि, खान खनिज और लोग विशाखापटीनम

85. नित्यानंद जयरामन, चेन्नई सॉलिडैरिटी ग्रुप, चेन्नई

86. जेसु रेतिनम, कोस्टल एक्शन नेटवर्क तमिलनाडु

87. राजेंद्र रवि, इन्स्टिटूट फार डिमाक्रसी एण्ड सस्टैनबिलिटी

88. बालू गादी, रायथु स्वराज्य वेदिका, आंध्र प्रदेश

89. वीरेन्द्र विद्रोही, इंडियन सोशल एक्शन फोरम

90. विजय कुमार, राज्य सचिव, सीपीआई (एमएल) रेड स्टार मध्य प्रदेश

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