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Deepmala Patel

शर्तों को ताक पर रख कर झाबुआ थर्मल पावर प्लांट की कॉन्ट्रैक्टर कंपनी एवी करियर फ्लाईऐश को गलत जगह पर डंप कर रही है|

मध्य प्रदेश के झाबुखा में लगा पावर प्लांट स्थानीय लोगों के लिए मुसीबत बन गया है। फोटो: दीपमाला

मध्य प्रदेश के गोरखपुर गांव में स्थित झाबुआ थर्मल पावर प्लांट से निकलने वाली राख आम लोगों के जीवन में जहर घोल रही है। क्षेत्र में विकास और रोजगार का वादा करने वाला यह पावर प्लांट अब लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहा है।

परियोजना के चरण-1 का निर्माण अप्रैल 2011 में शुरू हुआ। 600 मेगावाट के यूनिट 1 को मार्च 2016 में शुरू किया गया था। जब परियोजना का निर्माण किया जा रहा था, तब निर्माण कार्य के लिए परियोजना प्रबंधन के द्वारा खूड़ और खुटाताल गांव के किसानों, जिनकी जमीन बरोदा गांव में है उनके साथ में एक लिखित अनुबंध किया। जिसमें लिखा गया था कि झाबुआ पावर प्लांट निर्माण कार्य भूमि का समतलीकरण करने के लिए मुरुम मिट्टी की आवश्यकता है ,और उक्त मुरुम मिटटी के उत्खनन के लिए प्रति एकड़ 3000 रुपए दिए जाएंगे। साथ ही, प्रबंधन उक्त भूमि तक पहुंच मार्ग भी बनाएगा और भूमि का समतलीकरण करके भी देगा।

यह भी भरोसा दिया गया था कि भूमि को कुछ बिगाड़ेगा नहीं, न ही खराब होगी। जमीन खेती योग्य समतल बनाने का वादा कर झाबुआ थर्मल पावर प्लांट के प्रबंधन ने सालों तक खुदी हुई जमीन ऐसे ही छोड़ दी और अब जब वह समतलीकरण किया, तब उस खुदी हुई जमीन को समतल करने के लिए राखड़ का इस्तेमाल कर दिया। यह जमीन अन्य जमीन की तरह दिखे, इसलिए उन्होंने ऊपर एक परत मिट्टी की डाल दी, इससे उन्होंने एक बार के लिए राखड़ तो छुपा ली, किन्तु किसानों की एक अच्छी उपजाऊ जमीन को बर्बाद कर दिया ।

जमीन तो खराब हुई है, बल्कि डम्पर और ट्रक जो राख लेकर इन किसानों की जमीन तक जाते हैं, वह आसपास के कई गांवों से होकर जाते हैं। इस दौरान गांवों में राख और धूल उड़ती है। ट्रकों और डम्परों के निकलने से बहुत आवाज होती है। जब गांवों के लोगों के द्वारा ट्रक और डम्पर से उड़ने वाली राख के खिलाफ आवाज उठाई जाती है तो उन्हें पावर प्लांट के दलालों के द्वारा पीट -पीट कर हाथ पैर तोड़ दिए जाते है।

गांव बिनेकी के किसान बताते हैं कि पावर प्लांट के आस पास अधिक मात्रा में चरागाह की जमीन है। इस जमीन पर उगी घास और पेड़-पोधों पर भी राख उड़ कर जमा होती है, राख वाली घास खाने से कई पशुओं की मौत हो रही है। इस राख को फेंकने का यह खेल यही नहीं रुका 2022 में पावर प्लांट प्रबंधन के द्वारा फिर से उमरपानी गांव के कुछ किसानों के साथ में एक और अनुबंध किया और उनके खेत से भी मुरुम और मिट्टी निकाल कर वहां राख भरने का कार्य जून 2023 तक किया जाएगा।

यह प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के द्वारा प्रदान की अनुमति का उल्लंघन –

शर्तों को ताक पर रख कर झाबुआ थर्मल पावर प्लांट की कॉन्ट्रैक्ट कंपनी एवी करियर फ्लाईऐश को गलत जगह पर डंप कर रही है। अक्टूबर 2022 में पावर प्लांट से निकलने वाली लाखों मीट्रिक टन राख को कहीं अन्य जगह पर फेंकने का टेंडर निकाला गया था, जिसका ठेका प्लांट प्रबंधन द्वारा नागपुर की एवी करियर कंपनी को दिया गया था। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड भोपाल द्वारा सशर्त खसरा क्रमांक 225, 230 ,231, एवं 232 ग्राम उमरपानी में राख को फेंकने के अनुमति प्रदान की गई थी।

परन्तु संबंधित ठेकेदार के द्वारा उक्त खसरों की भूमि को छोड़कर शासकीय एवं अन्य भूमि पर राख फेंकी जा रही है। इतना ही नहीं, जिस भूमि पर राख फेंकी जा रही है, वहां के पेड़ भी बिना अनुमति के काट दिए गए, जिससे पर्यावरण की अपूर्ण क्षति हुई है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा अनुमति प्रदान करते समय भूमि का सीमांकन कराकर फील्ड बुक तैयार करने एवं मुनारे लगवाने पर ही अनुमति दी गई, लेकिन इस शर्त का पालन प्लांट प्रबंधन नहीं कर रहा है।

माना जाता है कि भारत में मिलने वाले कोयले में 30-40 प्रतिशत तक राख की मात्रा होती है। कोयले के जलने से निकलने वाली इस राख में पीएम 2.5, ब्लैक कार्बन, आर्सेनिक, बोरान, क्रोमियम तथा सीसा तो होता ही है, इसमें सिलिकॉन डाइऑक्साइड, एल्यूमीनियम ऑक्साइड, फेरिक ऑक्साइड और कैल्शियम ऑक्साइड की मात्रा भी बहुत होती है। हवा में कई किलोमीटर तक उड़ते हुए यह राख के कण पानी और दूसरी सतहों पर जम जाते हैं।

वहीं बारिश के दिनों में पानी के साथ बहती हुई लाखों टन राख, खेतों को बर्बाद करती हुई, पानी के स्रोत को भी प्रदूषित करती जाती है। जिन खेतों में यह राख डाली जा रही है, वही पर नीचे की तरफ टेमर नदी है। बारिश के पानी के साथ यह राख सीधे टेमर नदी के पानी में मिलेगी। टेमर नदी का पानी सीधे नर्मदा नदी में जाकर मिलेगा।

यह राख पानी और पर्यावरण में जहर घोलने के साथ-साथ आस पास रहने वाले लोगों में टीबी, दमा, फेफड़ों के संक्रमण, त्वचा रोग और कैंसर जैसी बीमारियों को भी फैला देती है।

इस पावर प्लांट के आसपास बरेला, बिनेकी, गोरखपुर,उमरपानी,बरोदा जैसे लगभग एक दर्जन गांव आते हैं। अगर इन ग्रामीणों की बात करें तो इनकी संख्या हजारों में है, जो रोजाना प्लांट से उड़ने वाली राख से परेशान हैं।

पिछले वर्ष ग्रामीणों के द्वारा झाबुआ थर्मल पावर प्लांट से होने वाले सामाजिक ,पर्यावरणीय प्रभावों और आजीविका के साधनों के नुकसान के बारे में पावर प्लांट को वित्तीय सहायता देने वाले बैंकों को पत्र लिखा गया था, क्योंकि जमीनी स्तर पर भारी नकारात्मक प्रभावों के लिए बैंक समान रूप से जिम्मेदार हैं। अगर बैंक इस परियोजना में अपना पैसा लगाने में सावधानी बरतते, पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों का आकलन करते तो यह त्रासदी कुछ हद तक रोकी जा सकती थी। किन्तु बैंकों के द्वारा दिया गया जवाब संतोषजनक नहीं है।

इससे यह लगता है कि बैंक अपने कर्तव्य से पीछे हट रहा है। साथ ही, ग्रामीणों ने लिखित रूप से प्लांट प्रबंधन, स्थानीय एसडीएम से लेकर जिला कलेक्टर को शिकायत की, जबकि वर्तमान में इसका स्वामित्व एनटीपीसी के पास है, बावजूद इसके ग्रामीणों को बीमार रूपी राख से मुक्ति आज तक नहीं मिली।

पर्यावरण और वन मंत्रालय के द्वारा कोयले से चलने वाले पावर प्लांटों से निकलने वाली राख के 100 फीसदी उपयोग के लिए तय की गई मियाद साल दर साल बढ़ती चली जा रही है। साल 1999 में पर्यावरण और वन मंत्रालय ने राख के 100 फीसदी उपयोग के लिए दिशा-निर्देश जारी किए थे, लेकिन इस आदेश पर कई राज्यों में आज तक अमल नहीं किया गया।

2021 -22 में केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) के द्वारा जारी राख उत्पादन और उपयोग के आंकड़ों को देखें तो देश भर में 2021-22 की स्थिति में 21,3620.50 मेगावाट की क्षमता वाले 200 ताप बिजलीघरों से 270.82 मिलियन टन राख का उत्पादन होता है। केंद्र सरकार का दावा है कि इसमें से 95.95 फीसदी यानी 259.86 मिलियन टन राख का उपयोग हो जाता है।

दूसरी तरफ, मध्य प्रदेश में 13 ताप बिजली घरों से 21,860 मेगावाट बिजली के उत्पादन के दौरान 28.8311 मिलियन टन राख उत्सर्जन होता है, लेकिन इसमें से केवल 16.9291 मिलियन टन यानी 58.72% का ही उपयोग हो पाता है। जबकि 600 मेगावाट के झाबुआ थर्मल पावर प्लांट से निकले 1.02 मिलियन टन राख में से 0.569 मिलियन टन राख यानी केवल 55. 69 प्रतिशत राख का ही उपयोग हो पा रहा है।

इस पावर प्लांट से निकलने वाली राख को संगृहीत करने के लिए 56.4 हेक्टेयर (139.36 एकड़) राख तालाबों के उपयोग के लिए पावर प्लांट प्रबंधन के द्वारा भूमि का अधिग्रहण किया गया है। फिर भी प्लांट प्रबंधन के द्वारा इस राख तालाब के अलावा प्लांट से निकलने वाली राख को आदिवासियों की जमीन पर ट्रकों में भरकर क्यों फेंका जा रहा है?

क्या झाबुआ थर्मल पावर प्लांट का राख तालाब भर गया है? या बरसात आने के पहले राख तालाब भर न जाये इस डर से नियमों को ताक पर रख कर प्लांट प्रबंधन के द्वारा प्लांट से निकलने वाली इस खतरनाक राख को अन्यत्र फेंकने का काम कर रहा है। जब से पावर प्लांट बना है तभी से फ्लाई ऐश के भंडारण और उपयोग के नियमों का उल्लंघन हो रहा है।

क्या है फ्लाई ऐश प्रबंधन से संबंधित पर्यावरण मंजूरी की शर्तें –

“(viii) पर्याप्त धूल निष्कर्षण प्रणालियां जैसे कि चक्रवात/बैग फिल्टर और धूल भरे क्षेत्रों जैसे कि कोयले से निपटने और राख से निपटने के बिंदु, स्थानांतरण क्षेत्र और अन्य कमजोर धूल वाले क्षेत्रों में पानी स्प्रे प्रणाली प्रदान की जाएगी।

(ix) संयंत्र के संचालन के दूसरे वर्ष से उत्पन्न 100% फ्लाई ऐश का उपयोग किया जाएगा। कार्यान्वयन की स्थिति समय-समय पर मंत्रालय के क्षेत्रीय कार्यालय को सूचित की जाएगी।

(x) फ्लाई ऐश को सूखे रूप में एकत्र किया जाएगा और भंडारण सुविधा (साइलो) प्रदान की जाएगी। अप्रयुक्त फ्लाई ऐश को गारे के रूप में राख तालाब में निस्तारित किया जाएगा। मरकरी और अन्य भारी धातुओं (जैसे, एचजी, सीआर, पीबी आदि) की निगरानी नीचे की राख में और साथ ही मौजूदा राख तालाब से निकलने वाले बहिस्राव में भी की जाएगी। निचले इलाके में राख का निस्तारण नहीं किया जाएगा।

(xi) ऐश तालाब को एचडीपी/एलडीपी लाइनिंग या किसी अन्य उपयुक्त अभेद्य मीडिया के साथ इस तरह से पंक्तिबद्ध किया जाएगा कि किसी भी समय कोई रिसाव न हो। ऐश डाइक को टूटने से बचाने के लिए पर्याप्त सुरक्षा उपाय भी लागू किए जाने चाहिए।”

स्रोत- https://environmentclearance.nic.in/offlineproposal_status.aspx

नहीं किया जा रहा पर्यावरण मंजूरी की शर्तों का पालन

झाबुआ पावर प्लांट प्रबंधन के द्वारा पर्यावरण मंजूरी की शर्तों का उल्लंघन किया जा रहा है, इससे यह लगता है की पावर प्लांट प्रबंधन को किसी प्रकार की कार्रवाई का कोई डर नहीं है। इसलिए पावर प्लांट से निकलने वाली राख को राख तालाब में सूखे रूप में संग्रहित किया जा रहा है। इस राख तालाब में कोई अस्तर नहीं है। बरसात के दिनों में तालाब का पानी नदी में ओवरफ्लो हो जाता है।

चूंकि राख के तालाब में कोई अस्तर नहीं है, इसलिए दूषित पानी के निष्कासन का खतरा अधिक है। इस तरह के राख तालाब के टूटने का डर हमेशा बना रहता है। देश में ऐसे कई मामले हुए है जहां पर बारिश के दिनों में राख तालाब टूटने से तबाही हुई है। राख को खुले में सूखे रूप में संग्रहित किया जाता है जो गर्मी या सर्दी में हवा की गति तेज होने पर राख हवा के साथ उड़ती है और आसपास के गांवों को प्रभावित करती है।

यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि राख को निर्दिष्ट साइलो और तालाबों के अलावा अन्य स्थानों पर संग्रहित किया जा रहा है। यह समुदायों के स्वास्थ्य,पशुओं, फसलों, पानी के स्रोतों के लिए लगातार खतरा पैदा कर रहा है और आगे भी करेगा।

This article was originally published in Down To Earth and can be read here.

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