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प्राकृतिक संसाधनों और कॉमन्स, जैसे सामुदायिक भूमि, वन, चारागाह और जल निकाय स्थानीय समुदायों के लिए महत्वपूर्ण हैं जो इन संसाधनों पर निर्भर हैं और उनके सतत उपयोग एवं संरक्षण के लिए पीढ़ियों से प्रयासरत हैं।

कॉमन्स न केवल हमारी पारिस्थितिकी को संतुलित रखते हैं, बल्कि ग्रामीण आजीविका, जैव विविधता, और जलवायु अनुकूलन के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। दुर्भाग्यवश, हर साल इन संसाधनों में 4% की कमी आ रही है, जिससे पर्यावरणीय और सामाजिक चुनौतियां बढ़ रही हैं। इन कॉमन्स के संरक्षण और पुनरुद्धार के लिए दीर्घकालीन योजना पर कार्य करने की आवश्यकता है।जिससे एक बेहतर, समान और टिकाऊ भविष्य का निर्माण हो सके।

गांव में स्थित जल-जंगल-जमीन पर आजीविका के लिए निर्भर समाज के अधिकार को मध्यप्रदेश में निस्तार हक को मान्यता है। आजादी के बाद सी.पी.एण्ड बेरार और बाद में पुराने मध्यप्रदेश की सरकारों ने भू- राजस्व संहिता में प्रावधान कर निस्तार हक को कानूनी मान्यता प्रदान की है।राजस्व विभाग के द्वारा मध्यप्रदेश भू राजस्व संहिता के अध्याय 18 में बताई व्यवस्था के अनुसार निस्तारी व्यवस्था हेतु 1964 में निस्तार नियम बनाकर लागू किए गए हैं।इसके अन्तर्गत प्रत्येक राजस्व गांव का निस्तार पत्रक बनाकर पटवारी रिकॉर्ड में रखा गया है।समस्त गैर कृषि भूमि को लेकर मध्यप्रदेश भू- राजस्व संहिता 1959 के अध्याय 18 में दखल रहित भूमि मानकर ही प्रावधान किया गया और इन भूमियों के तीन अलग – अलग प्रारूपों में दस्तावेज बनाए जाने का प्रावधान भी धारा – 233 में किया गया।दखल रहित भूमियों से संबंधित सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज धार – 234 के तहत निस्तार पत्रक के नाम से बनाया गया। इन भूमियों को भू – राजस्व संहिता की धारा- 237(1) में सार्वजनिक प्रयोजनों के लिए आरक्षित किया गया एवं धारा – 237(2) में कलेक्टर को प्रयोजनों के परिवर्तन का अधिकार दिया गया।आजादी के पहले और आजादी के बाद राजस्व ग्रामों की निजी कृषि भूमि को छोड़कर शेष संसाधनों को राजस्व अभिलेखों में मदवार दर्ज किया जाता रहा है, जिन पर समाज के अधिकार, सार्वजनिक एवं निस्तारी प्रयोजन भी समानांतर रूप से एक साथ दर्ज किए जाते रहे हैं।भू – राजस्व संहिता- 1959 और उसके तहत बनाए गए मानचित्र, निस्तार पत्रक, अधिकार अभिलेख, खसरा पंजी में दर्ज दखल रहित जमीनों को उनके सार्वजनिक एवं निस्तारी प्रयोजनों को, उन पर समाज के अधिकारों को ध्यान में रखते हुए भारतीय संविधान की 1993 में स्थापित 11 वीं अनुसूची में पंचायती राज व्यवस्था को अधिकार सौंपें गए हैं। पंचायत उपबंध (अनुसुचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम 1996 याने पेसा कानून और मध्यप्रदेश नियम – 2022 में ग्राम सभाओं को अधिकार सौंपें गए हैं। देश की सर्वोच्च अदालत ने सिविल प्रकरण क्रमांक 19869/2010 के संदर्भ में दिनांक 28 जनवरी 2011 को आदेश की कंडिका (3) में अधिकार और प्रयोजनों का उल्लेख करते हुए इस तरह के संसाधनों पर संबंधित पंचायती राज व्यवस्था का अधिकार, नियंत्रण और प्रबंधन मानते हुए कंडिका (23) में राज्यों के मुख्य सचिवों की जिम्मेदारी निर्धारित की गई है। 

मध्यप्रदेश के ग्रामीण अंचल के गांवों में छोटी घास(चरनोई भूमि) और बङे बड़े झाङ की जमीन पर सरकारी अधिकारियों के सांठगांठ से कब्जाधारियों द्वारा कब्जा होकर हजारों हेक्टेयर भूमि पर आधिपत्य जमा लिया है। पङताल में सामने आया है है कि कई गांव में तो निस्तारी और सरकारी जमीन ही नहीं बची है। विदिशा जिले के शमशाबाद के लाडपुर में दबंगों ने सरकारी जमीन पर कब्जा कर रखा था।शिकायत की जांच होने पर पता चला कि वर्षा से सरकारी जमीन पर खेती की जा रही है। कलेक्टर विदिशा के आदेश पर दबंगों से लगभग 79 हेक्टेयर सरकारी भूमि खाली करवाया गया, जिसकी कीमत 10 करोड़ बताई जाती है।सामुदायिक जल निकाय के मामले में रीवा जिले के मऊगंज तहसील के अन्तर्गत ग्राम फूल हरचंदा सिंह स्थित शासकीय तलाब पर अतिक्रमण का मामला जबलपुर हाईकोर्ट में सुनवाई के लिए लगा हुआ है।छतरपुर जिले में मौजूद 607 तालाबों में से कुछ पर लोगों ने कब्जा कर रखा है। जिला प्रशासन ने 19 अतिक्रमणकारियों पर कार्यवाही भी की है।टीकमगढ़ जिले सरकारी तालाब को गांव की मत्स्य उद्योग सहकारी समिति माडुमर को 10 साल के लिए लीज पर दिया गया है परन्तु दबंगों ने मछुआ समूह के तालाब का अपहरण कर लिया है।ये मात्र कुछ उदाहरण हैं।इसको लेकर गांव समाज और जिला प्रशासन को मिलकर अपने इस महत्वपूर्ण संसाधनों को संरक्षित करने के लिए भूमिका तय करना होगा।जिसमें महिलाओं की अहम भूमिका होनी चाहिए।समस्या यह है कि आज इंसान को यह नहीं पता कि उपयोगी प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन कैसे करें।वह तो प्राकृतिक संसाधनों के दोहन करने की प्रतिस्पर्धा में यह भूल गया है कि इसके दुष्प्रभाव क्या हो सकते हैं। यह भी नहीं समझ पा रहा है कि इस अंधी दौड़ में आखिर किससे आगे निकल जाना है। 

राज कुमार सिन्हा, बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ

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