भारत का लक्ष्य 2022 तक अक्षय ऊर्जा यानी रिन्यूएबल एनर्जी (अक्षय ऊर्जा या नवीकरणीय ऊर्जा के उदाहरण हैं – बायोगैस, बायोमास, सौर ऊर्जा इत्यादि.) से 175 गीगावॉट बिजली उत्पादन करने का था। साथ ही, भारत सरकार ने 2030 तक अक्षय ऊर्जा क्षमता को 500 गीगावॉट तक बढ़ाने की प्रतिबद्धता जताई है। रिन्यूएबल एनर्जी के लक्ष्य को हासिल करने के लिए देश को हर साल लगभग डेढ़ से दो लाख करोड़ रुपए के निवेश की जरूरत है, लेकिन अभी इस क्षेत्र में सालाना 75 हजार करोड़ रुपए का ही निवेश हो पा रहा है। जो की अक्षय ऊर्जा के लक्ष्य को हासिल करने के लिए काफी नहीं है।
वही जुलाई माह के शुरुआत में उत्तर प्रदेश सरकार ने सोनभद्र के ओबरा में 18,000 करोड़ रुपये की लागत से 800 मेगावाट की दो अल्ट्रा सुपर क्रिटिकल ओबरा -डी थर्मल पावर परियोजनाओं को मंजूरी दे दी, जिसका उद्देश्य राज्य के लोगों को सस्ती बिजली प्रदान करना बताया जा रहा है।” ऊर्जा मंत्री ने यह भी कहा कि थर्मल पावर उत्पादन के मामले में यूपी की मौजूदा क्षमता 7,000 मेगावाट है और दो संयंत्र मौजूदा क्षमता का लगभग 25 प्रतिशत योगदान देंगे। सरकार के द्वारा लिए गए इस निर्णय से क्षेत्र के लोगो के स्वास्थ्य और पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा।
ओबरा थर्मल पावर प्लांट की 8 यूनिट (ओबरा -A 1-5 यूनिट तथा ओबरा-B 6- 8) जिनकी क्षमता 532 मेगावाट की थी वह 2017-18 में सेवानिवृत्त कर दी गयी थी। तथा अन्य पांच यूनिट (9-13),जो अभी सक्रिय हैं, लगभग 40 साल पुराने हो गए है। किसी भी थर्मल पावर प्लांट के संचालन की औसत समय सीमा 25 साल होती है। लेकिन 1000 मेगावाट की 5 यूनिट को अभी तक सेवानिवृत्त नहीं किया गया है।
2020 में डाउन टू अर्थ में छपे एक लेख के अनुसार यूपी और मध्य प्रदेश (एमपी) सिंगरौली-सोनभद्र के कुछ हिस्सों में फैले लगभग 9 थर्मल पावर प्लांट है। यहाँ पर 2019-2020 में थर्मल पावर प्लांट के फ्लाई-ऐश बांध टूटने की तीन घटनाओं ने थर्मल पावर प्लांट के राख के रख -रखाव पर सवाल खड़े किये,वही क्षेत्र में बार-बार राख बांध टूटने की घटनाएं और राख का ढेर लगना, जिससे सिंगरौली-सोनभद्र में रहने वाले लोगों को इस क्षेत्र में कोयला खदानों और बिजली संयंत्रों के कारण कई वर्षों से वायु प्रदूषण का प्रतिकूल प्रभाव झेलना पड़ रहा है। राख के ढेर में अतिरिक्त राख के कारण अक्सर राख के बांध लीक हो जाते हैं या ओवरफ्लो हो जाते हैं, जिससे आस-पास रहने वाले लोगों के लिए तबाही मच जाती है। इससे भूजल और सतही जल प्रदूषण भी होता है
इस क्षेत्र की पहचान केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा गंभीर रूप से प्रदूषित क्षेत्र के रूप में की गई थी। जिसमें समग्र व्यापक पर्यावरण प्रदूषण सूचकांक मूल्यांकन स्कोर 81.73 था।
राज्य में 6600 मेगावाट की 5 परियोजनाएं वर्तमान में निर्माणाधीन है।
ओबरा -C | 1320 मेगावाट |
जवाहरपुर सुपर थर्मल पावर स्टेशन | 1320 मेगावाट |
घाटमपुर थर्मल पावर स्टेशन | 1980 मेगावाट |
मेजा थर्मल पावर स्टेशन | 1320 मेगावाट |
पनकी थर्मल पावर स्टेशन | 660 मेगावाट |
यही नहीं, जुलाई 2014 में इलाहाबाद जिले में करछना थर्मल पावर स्टेशन को स्वीकृति मिली थी। जिसकी अनुमानित क्षमता 1320 मेगावाट थी। अभी तक इस पावर प्लांट का निर्माण शुरू नहीं हुआ है। फिर एक नयी परियोजना – 1600 मेगावाट क्षमता वाली ओबरा -D को 18000 करोड़ रुपये की लागत की मंजूरी देना कितना जायज़ है ?
इस प्रस्तावित परियोजना के लिए सरकार के द्वारा पहले ही 500 एकड़ जमीन उपलब्ध करवाई जा चुकी है,यदि आवश्यकता हुई तो और अधिक जमीन आवंटित की जाएगी। जबकि यूनिट 1- 8 सेवानिवृत्त हो गई है। क्या प्रस्तावित परियोजना के लिए सेवानिवृत्त हो गई यूनिटों की जमीन का उपयोग करेंगे ? या अन्य जमीन को आवंटित किया जा रहा है ? ऐसे कई सवाल खड़े हो रहे है। ओबरा -D थर्मल पावर परियोजना 2027 में बिजली उत्पादन शुरू करेगी, जबकि भारत के प्रधानमंत्री ने 26 वें संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन (COP- 26) में घोषणा की थी,कि भारत, 2030 तक अपनी गैर जीवाश्म ऊर्जा क्षमता को 500 गीगावाट तक पहुंचाएगा। यही नहीं, 2030 तक अपनी 50 प्रतिशत ऊर्जा की जरूरत अक्षय ऊर्जा से पूरी करेगा। भारत 2030 तक के कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन में एक बिलियन (अरब) टन की कमी करेगा। भारत, अपनी अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता (इन्टेंसिटी) को 45 प्रतिशत से भी कम करेगा। और 2070 तक भारत, नेट जीरो का लक्ष्य हासिल करेगा। रिजर्व बैंक ने 2022- 23 में मुद्रा एवं वित्त पर एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें जलवायु से संबंधित अनेक आयामों को शामिल किया गया है। जिसमें कहा गया है कि अगर भारत को 2070 तक कार्बन के शून्य लक्ष्य को हासिल करना है तो एनर्जी मिक्सिंग का दौर तेजी से लाना होगा । किन्तु कोयला आधारित नए बिजली संयंत्रों का निर्माण शुरू करने की अनुमति देने से रिन्यूएबल ऊर्जा लक्ष्यों की प्राप्ति में और विलम्ब होगा। यह रिन्यूएबल उद्योग के विकास को भी खतरे में डाल देगा। देश में 2022-23 में कोयला आधारित बिजली संयंत्रों से बिजली उत्पादन में पिछले वर्ष की तुलना में 8.87% की वृद्धि देखी गई। 2023-24 के लिए बिजली उत्पादन का लक्ष्य 1750 बिलियन यूनिट तय किया गया था, जिसमें से 75% से अधिक थर्मल स्रोतों, मुख्य रूप से कोयले से होने की उम्मीद है। तो भारत के कोयले पर निर्भरता कम कैसे हो सकती है ? दुनिया भर में एक ओर जहां अक्षय ऊर्जा को बढ़ाकर विभिन्न प्रकार के पर्यावरणीय समस्याओं से निजात पाने की बात चल रही है। वहीं अक्षय ऊर्जा के उत्पादन में लगने वाले अलग-अलग धातुओं के लिए की जा रही खनन को जैव विविधता के लिए खतरा बताया जा रहा है। नवीनीकरण ऊर्जा से होने वाले पर्यावरणीय नुकसान को भी अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए ।
उत्तर प्रदेश की बिजली उत्पादन की बात करे तो, अप्रैल 2023 में टाइम्स ऑफ़ इण्डिया में छपे लेख के अनुसार उत्तर प्रदेश सरकार ने दावा किया है की राज्य के स्वामित्व वाले थर्मल पावर प्लांट 39,691 का उत्पादन करने में कामयाब रहे है। जो 2022-23 में अब तक का सबसे ज्यादा यूनिट बिजली उत्पादन का रिकॉर्ड है। वित्तीय वर्ष 2022-23 में, राज्य (यूपीआरवीयूएनएल) के स्वामित्व वाले बिजली संयंत्रों जैसे अनपरा ओबरा, पारीछा और हरदुआगंज थर्मल परियोजनाओं ने कुल 39,691 मिलियन यूनिट बिजली पैदा की, जो 2021-22 में 35,022 मिलियन यूनिट के कुल सकल बिजली उत्पादन से 13.33% अधिक है।
राज्य के बिजली संयंत्रों ने 76.44% प्लांट लोड फैक्टर (पीएलएफ- औसत लोड और पीक लोड का अंश है) पर काम किया। यह 2019-20, 2020-21 और 2021-22 में क्रमशः 68.80%, 69.71% और 71.82% से अधिक था। अकेला अनपरा थर्मल पावर स्टेशन की 2×500 मेगावाट इकाइयों ने रिकॉर्ड 95.75% वार्षिक प्लांट लोड फैक्टर (पीएलएफ) पर बिजली का उत्पादन किया। इकाई ने 8388 मिलियन यूनिट का अब तक का सबसे अधिक सकल विद्युत उत्पादन किया।
इस प्रस्तावित परियोजना में राज्य सरकार, केंद्र सरकार के स्वामित्व वाली बिजली जनरेटर एनटीपीसी के साथ 50:50 की साझेदार होगी । परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए जहां 30 प्रतिशत इक्विटी दी जाएगी, वहीं शेष 70 प्रतिशत राशि की व्यवस्था वित्तीय संस्थानों से की जाएगी। इसका मतलब यह है कि बैंकों में जमा जनता का पैसा इस परियोजना पर लगाया जाएगा, जिससे थर्मल पावर प्लांट के आसपास रहने वाले जनता का ही नुकसान होगा। ओबरा पावर प्लांट जैसे कई पावर प्लांट है जिनकी वजह से उस क्षेत्र की जमीन,वहा रहने वाले जीव जंतु, समुदाय को सामाजिक और पर्यावरणीय नुकसान का सामना करना पड़ा है । थर्मल पावर प्लांट से निकलने वाली राख हवा में घुल कर लोगो व जीव जंतुओं के स्वास्थ्य, जल स्त्रोत, फसल को हानि पहुंचाती है। लोकहित और पर्यावरण सरंक्षण की दृष्टि से ओबरा- D थर्मल पावर प्लांट पर किसी भी वित्तीय संस्था /बैंक के द्वारा अपना पैसा नहीं लगाना चाहिए। ऐसा करना जनता के साथ विकास के नाम पर खिलवाड़ करना होगा।
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