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विश्वयुद्ध के बाद ब्रिटेन के ब्रेटेनवुड में खादी की गई वैश्विक वित्तीय संस्थाओं की ताक़त एक ज़माने में बेतेरह बढ़ी थी। वे अपनी मनमर्ज़ी के विकास की अवधारणा को दुनियाभर पर थोप सकती थीं। ऐसे में भारत के किसानों, आदिवासियों, मछुवारों द्वारा उन्हें ख़ारिज करवा लेना एक ऐतिहासिक जीत है। वर्ष 1993 में नर्मदा घाटी से विश्वबैंक के वापस भगाए जाने की तर्ज़ पर हाल में गुजरात की ‘टाटा मुंद्रा परियोजना’ से विश्वबैंक की सहायक संस्था ‘आइएफसी’ को भी क़ानूनी लड़ाई की मार्फ़त लौटाया गया है।

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